चेतना के स्वर | Chetna Ke Swar

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Chetna Ke Swar by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बैर हुआ है क्यूं हरजाई किस्मत को पंजाब से आओ हिलमिल दूर करें हम नफरत को पंजाव से किसकी नजर लगी गुलशन को, रौनक गई बहारों से हंसने लगे अन्धेरे या रव, गायब, चमक सितारों से । ठहर गया नदिया का पानी, भटकी लहर किनारों से, मन्दिर मस्जिद मौन, मसीहा चिन्तित थे गुरुद्वारों से । कुर्सी के लालचने जोड़ा मज़हव को पंजाव से, वाहे युरु की कृपा से निकले, सव दुश्मन की चाल से । अमन की किरणे फैले फिर गुरुग्रन्थ की अमर मशाल से, लाखों के दिल जीते हमने है सतश्नरी अकाल से। भाई चारे की अपील सिखों के हृदय विशाल से, गंगा को भी प्यारा है जितना सतलज को पंजाब से। रूठ गये हैं हमसे अपने, आओ इन्हें मना लें हम । सारे शिकवे गिले भुलाकर सबको गले लगा लें हम । इक दूजे के दर्दे बाँट लें सारे भरम भुला लें हम, देश की किश्ती तुफानों से मिलजुल सभी निकालें हम । जाने ना दी बलिदानों की हसरत को पंजाबसे। “-अब्दुल जब्बार चेतना के, स्वर / 13




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