आधुनिक कवि भाग ५ | Adhunik Kavi (part-5)

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Adhunik Kavi (part-5) by महादेवी वर्मा - Mahadevi Verma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रपने दृष्टिकोण से चत्र अनुष्य चाहे प्रकृति के जड़ उपादारों का संघातविशेष माना जादे भौर चाहे किसी व्यापक चेतना का झंदभूत परन्तु किसी भी झवस्था में उसका जीवन इतना सरल नहीं है कि हम उसकी पूर्ण तृप्ति के लिए गणित के प्रंको के समान एक निश्चित सिद्धान्त दे सकें। जड द्रव्य से भन्य परु तथा वनस्पतिं जगत के समान ही उसका शरीर निभित भौर विकसित होता हैँ भतः प्रत्यक्ष रूप से उसकी स्थिति बाह्य जगत में ही रहेगी भौर प्राणिशास्त्र के सामान्य नियमों से संचालित होगी। यह सत्य है कि प्रति में जीवन के जितने रूप देखे जाते हैं मनुष्य उनमें इतना विशिष्ट जान पड़ता हूँ कि सृजन की स्थूल समप्टि में भी उसका निरिचत स्थान खोज लेना कठिन हो जाता हूँ, परन्तु इस कठिनाई के मूल में तत्त्वतः कोई भ्रन्तर न होकर विकास-क्रम में मनुष्य का भन्यतम भौर घ्रन्तिम होना ही है १ यदि सवके लिए सामन्यि यह्‌ बाह्य संसार ही उसके जीवन को पूणं कर देता तौ तेष प्राणिजगत के सपान वह्‌ बहूत सी जटिल समस्य से बच जाता \ परन्तु ऐसा हो नहीं सका। उसके शरीर मे जैसा मौतिक जगत का श्वरम विवास है उसकी चेतना भी उसी प्रकार प्राणिजग्रत की चेतना का उत्दृष्टतम रुप है। मनुष्य का निरन्तर परिष्डृत होता चलनेवाला यह मानसिक जयत वस्तुजगत के संघर्ष से प्रभावित होता है, उसके स्ेतों में घपती भरभिष्यवित चाहता है परन्तु उसके মল্যন को पूर्णता में स्वीकार नहीं करना चाहता। प्रतः जो दुख प्रत्यक्ष है केवल उतना ही मनुप्य नहीं वहा जा सकता--उसके साथ साथ उसका जितना विस्दृत भौर गतिशील प्रप्रत्यज्ष जीवत है उसे भी समझना होगा, प्रत्यक्ष जगत में उसवा भी मूल्याॉवत करना होगा, घन्यया मनुष्य के सम्बन्ध में हमारा सारा ज्ञान धपूर्ण भौर सारे रूमाधान परधूरे रहेंगे $ मनुष्य के इस दोहरे जीवत के समान ही उसके तिरट बाह्य जगत दी राव वस्तुप्नों वा उपयोग भी दोहरा हे! भोस की दुँशे से जड़े गुल्लाद के दल जद हमारे हदय में भुप्त एक पर्यस्त सौद्दर्य्य भौर सुख बी मावता को जागृत कर देते है, उनती क्षणिक छुप्मा हमारे मस्तिष्क को चिन्तन की सामग्री देती है तब हमारे निकट उनशा ओ उपयोग है वह उस समय के उपयोग से धर्दंषा भिन्न होगा जद




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