ज्ञाता धर्म कथंग सूत्रम | Gyata Dharm Katha Sootram

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Gyata Dharm Katha Sootram by कन्हैयालाल जी महाराज - Kanhaiyalal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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अनगारधर्मासतवर्पषिणीदीका, ५. १ शम्पानगर्यादिनि्पणम ५ ~~~ ~~~ ~~ ~ ~~~ ~~~ करोति, यत एष स्वाघ्यायाभिरेतत्प्रजातुममनेनात्यन अगणकोपकार्‌. तदत्र ল- सुतमसतीनामागमभावावबो धविधुराणां सौलस्यं चो दिश्य तद्तत्यृ+ ह््यापरिष्कर्त प्रवत्त । तप्रदमादिम सृत्रम--त्ेणं कालेण” इत्यादि। मूल्म-.-तेणं कालेणं तेण॑ समएणं चंपा नाम॑ नयरी होत्था' वण्णओ तीसे ण॑ चंपाए नयरीए बहिया उत्तरपुरत्थिसे दिसीभांए पुणणभद्दे नाम॑ चेइए होत्था। वण्णओ०। तत्थ चंपाए नयरीष कोणिए नाम॑ राया होत्था वण्णओ ॥ सू० १॥ टोका--अन्न सप्म्यथें तृतीया प्राक्ृतत्वात। तस्मिनकाले तम्मिन्‌ समये चश्या नाम नगरी असीत्‌ । नतं कोट-समययोरत्र को मेदः ? उच्यते-कच्ईति सामान्य से महान्‌ उपकारी है। अनः स्वाध्याय आदारा उत मुनक अनुशञोलन कर उसक्रे अनुसार चलनेवालो आत्मां सको अपार उपझार होता है तथा जो असपुद्धि बरे ई, ओर्‌ उषी से आगम के भाव को समझने के लिये जो असमर्थ बने हुए हैं उनको भी धति उम्र ग्र3 में हो सकती है इस सब बातों का ख्याल्कर में इस सत्र पर टीका रच रहा हूँ। इस सूत्र का सब प्रथम सत्र यह हैः-क्राठेणः तेण समएण इत्यादि। टीकाथ-- तेणं कालेणं॑ लेग॑ समएणणं-चंदर লাল नवरो होत्था चण्णञ ) उसक्ोल में ओर उस खसमयमें चम्पा नामको नगरोथी | काल शब्द से अवसरपिंणीकालू का चौथा आरा यहां ग्रदीव छुआ है कारण इसी দ্দাত में तीथकर आदि महापुरुषों का जन्म होता प्रतिपाइन धरनार छोजाथी खत्वन्त उपहार 9. खेटला এটি स्वाध्याय बभेरेथी 4 सनद सखीन धनी वथा सेते अउुयरोनें यावनारा खात्मामेने। मु ठप थाय ए, तेभ पोशे। जब्पणुद्धिवाणा 8, तेमवी शेटवे थे मागजमना मानन्‌ व्वशुवाभा 288২2 छ, तेवी एशु गति ते खूनभां थक्ष श्र छ जाणपी वाताने ध्यानर्भा राणीने डः २ चूल 5५२ 9৬. ৪৮0. रहो छू. जा सजछ स्थी चट २ भा छ--- (तेग काटेभः रेण सप्रएणं इत्यादि পর 145: ক্কাউগ तेणं समएणं चेगरा नाम॑ नथरी होता “जु-, प्णओओ) ते अणे बने ते समये यञ नमे नगरी इती, शरण ৪০৪ এই আখ कि अ अरुण अस्वामि सन्ये, छः छयमे से आणे ই ইউ লি - तीथ४२ बणेरे भश्ायुरुपीने। व्टन्भ थाय छे, समय दन्द वड ते आलयम পি পি राना 1 वा नल रबर कलर सनम সাপ পি পিপাসা পিপিপি পল




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