विट्ठलनाथ करत विद्वन्मण्डलं का समीक्षात्मक अध्ययन | Vitathalnath Krit Vidwanmandalam Ka Samikshatmak Adhyyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
20 MB
कुल पष्ठ :
309
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)की तरह शुप्रदतर्पाक्तियों पर हास्य की प्रभा धारण कर दो चार मधर वचन
बोल दे तो मुक्ति रूपी तीपी से क्या प्रयोजन 9 6
किन्तु कुछ समय के उपरान्त श्री विटृठलनाथ जी चैतन्य महाप्रझ्ञ के
प्रभाव से मुक्त हो गये ।
तंवत् 1616 मे जगन्नाथपुटी ते लौटकर श्री दिद्ठलनाथ अशैल आये ।
सवत् 1616 ले 1619 तक उन्होंने अपने प्रतिद्व ग़न्श 1 व्द्रन्मन्ड** कौ रचना
की । 1619 के बाद उन्होंने अरैल निवात परित्याग केर दिया । अल
ते गदरा आये उसके बाद 1622 में गोकुन पहुँचे । गोकुल मे चौरासी दिन तक
रहन के बाद `विट्ठल मथ॒रा आ गये ।
अदल से गदरा आकर उन्होने टानीदुगविती कौ सम्प्रदाय कौ दीक्षा
दो । रानी ने इनको 108 गाँव प्रदान किये तथा मधुरा भे उनके सिवास के
लिए “ सतघरा नामक स्थान बनवाया ।
गुजरात के अतिरिक्त व्दिठलनाय ने मगधु एवं उत्तर की यात्रायै की ।
व्रज कौ यात्रा अनेक बार की जो कि चौरासी कोत की होती थी, जिसे
परिक्रमा कहा जाता था । इस यात्रागल मे इन्होनि विभिन्न स्थानों
तनयेन कतरत शेः आना तनी तव पनिद पवितिः ति व রাস জিও এনা থাড এরি,
এআঠাওঞ্ঞাতাড अलिकिक! सवाल
6 कृपयति यदि राधा बाधितारेषबाधा
'किमपरमवश्षिटं पुष्टिमयादियों मेँ ।
यदि व्दति च किन्चत् स्मेरहात्तो त श्री-
द्विज वरम ण्छिड्क्त्या मुजिश्क्ट्या सिम् |
| অন্তু বলীকী मे राधा प्रार्थना|
- वैष्णव साधना और -सिद्रान्त
~ त्व डा अदने्रवर नाथ मिश्र माधव
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