विट्ठलनाथ करत विद्वन्मण्डलं का समीक्षात्मक अध्ययन | Vitathalnath Krit Vidwanmandalam Ka Samikshatmak Adhyyan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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की तरह शुप्रदतर्पाक्तियों पर हास्य की प्रभा धारण कर दो चार मधर वचन बोल दे तो मुक्ति रूपी तीपी से क्या प्रयोजन 9 6 किन्तु कुछ समय के उपरान्त श्री विटृठलनाथ जी चैतन्य महाप्रझ्ञ के प्रभाव से मुक्त हो गये । तंवत्‌ 1616 मे जगन्नाथपुटी ते लौटकर श्री दिद्ठलनाथ अशैल आये । सवत्‌ 1616 ले 1619 तक उन्होंने अपने प्रतिद्व ग़न्श 1 व्द्रन्मन्ड** कौ रचना की । 1619 के बाद उन्होंने अरैल निवात परित्याग केर दिया । अल ते गदरा आये उसके बाद 1622 में गोकुन पहुँचे । गोकुल मे चौरासी दिन तक रहन के बाद `विट्ठल मथ॒रा आ गये । अदल से गदरा आकर उन्होने टानीदुगविती कौ सम्प्रदाय कौ दीक्षा दो । रानी ने इनको 108 गाँव प्रदान किये तथा मधुरा भे उनके सिवास के लिए “ सतघरा नामक स्थान बनवाया । गुजरात के अतिरिक्त व्दिठलनाय ने मगधु एवं उत्तर की यात्रायै की । व्रज कौ यात्रा अनेक बार की जो कि चौरासी कोत की होती थी, जिसे परिक्रमा कहा जाता था । इस यात्रागल मे इन्होनि विभिन्न स्थानों तनयेन कतरत शेः आना तनी तव पनिद पवितिः ति व রাস জিও এনা থাড এরি, এআঠাওঞ্ঞাতাড अलिकिक! सवाल 6 कृपयति यदि राधा बाधितारेषबाधा 'किमपरमवश्षिटं पुष्टिमयादियों मेँ । यदि व्दति च किन्चत्‌ स्मेरहात्तो त श्री- द्विज वरम ण्छिड्क्त्या मुजिश्क्ट्या सिम्‌ | | অন্তু বলীকী मे राधा प्रार्थना| - वैष्णव साधना और -सिद्रान्त ~ त्व डा अदने्रवर नाथ मिश्र माधव




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