विट्ठलनाथ करत विद्वन्मण्डलं का समीक्षात्मक अध्ययन | Vitathalnath Krit Vidwanmandalam Ka Samikshatmak Adhyyan

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Vitathalnath Krit Vidwanmandalam Ka Samikshatmak Adhyyan  by डॉ राजलक्ष्मी Varma - Dr. Rajlakshmi Varma

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ राजलक्ष्मी वर्मा - Dr. Rajlakshmi Varma

Add Infomation AboutDr. Rajlakshmi Varma

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
की तरह शुप्रदतर्पाक्तियों पर हास्य की प्रभा धारण कर दो चार मधर वचन बोल दे तो मुक्ति रूपी तीपी से क्या प्रयोजन 9 6 किन्तु कुछ समय के उपरान्त श्री विटृठलनाथ जी चैतन्य महाप्रझ्ञ के प्रभाव से मुक्त हो गये । तंवत्‌ 1616 मे जगन्नाथपुटी ते लौटकर श्री दिद्ठलनाथ अशैल आये । सवत्‌ 1616 ले 1619 तक उन्होंने अपने प्रतिद्व ग़न्श 1 व्द्रन्मन्ड** कौ रचना की । 1619 के बाद उन्होंने अरैल निवात परित्याग केर दिया । अल ते गदरा आये उसके बाद 1622 में गोकुन पहुँचे । गोकुल मे चौरासी दिन तक रहन के बाद `विट्ठल मथ॒रा आ गये । अदल से गदरा आकर उन्होने टानीदुगविती कौ सम्प्रदाय कौ दीक्षा दो । रानी ने इनको 108 गाँव प्रदान किये तथा मधुरा भे उनके सिवास के लिए “ सतघरा नामक स्थान बनवाया । गुजरात के अतिरिक्त व्दिठलनाय ने मगधु एवं उत्तर की यात्रायै की । व्रज कौ यात्रा अनेक बार की जो कि चौरासी कोत की होती थी, जिसे परिक्रमा कहा जाता था । इस यात्रागल मे इन्होनि विभिन्न स्थानों तनयेन कतरत शेः आना तनी तव पनिद पवितिः ति व রাস জিও এনা থাড এরি, এআঠাওঞ্ঞাতাড अलिकिक! सवाल 6 कृपयति यदि राधा बाधितारेषबाधा 'किमपरमवश्षिटं पुष्टिमयादियों मेँ । यदि व्दति च किन्चत्‌ स्मेरहात्तो त श्री- द्विज वरम ण्छिड्क्त्या मुजिश्क्ट्या सिम्‌ | | অন্তু বলীকী मे राधा प्रार्थना| - वैष्णव साधना और -सिद्रान्त ~ त्व डा अदने्रवर नाथ मिश्र माधव




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now