मनोरंजन पुस्तकमाला - 14 | Manorangan Pustak Mala-14

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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“( ६ 9 भात्र से मीठी बाते करना & कहाँ शूद्रों को असभाधष्य ठहरानां ओर ' स्त्रीशूद्रद्विजबधूना त्रयी न श्र्‌ तिगोचरा ! से उन्हें शिक्षा से वचित रखना ! विशुद्ध अध्यात्मवाद वा ज्ह्मबाद जिसके विषय मे “ एकमेव बद्त्यप्रि मनुसेऊे प्रजापतिम । इद्रमेकेऽपरे प्राणमपरे ब्रह्मशाश्वतम्‌ ? की शिक्षा बेदिक महपि यो ने दी थी और जिस सिद्धात के विषय मे महपि यास्काचाय्य ने “ आत्मेबेषा रथो भवति आत्माश्व आत्मायुध त्मा सवे देवस्य देवस्य > कटा था, चह देवताबाद के परदे मे दिप गया था । सब लोग पुरुषाथीन हो प्रखक्त देवताश्रो से जो उसी सवोत्मा जह्य के ्रवातर वां शक्ति भेद थे और जिनके विषय मे निरुक्तकार ने स्पष्ट शब्दो मे ^ एकस्यास्मनोऽन्ये देवा प्रत्यज्खानि भवन्ति ” कहा था, उपयोग लेने की जगह उन्हे अपरोक्ष और अलौकिक मान उन्हे श्राहुतियो से प्रसन्न कर उनसे परलोक मे सहायता की अभिलाषा रखते थे । हिंसा का प्रचार इतना बडा था किं बडे यज्ञो से लेकर गृह्यक्मों तक शौर श्राद्ध से लेकर आतिथ्य- सत्कार तक कोर क्छ ऐसा न था जो हिसा ओर मास के बिना हो सके । दशनो का सूत्रपात यद्यपि बहुत पूवं काल मे, वेदिक युग मे ही, मह॒षि कपिल जी ने किया था और तब से समय समय ৭» আলা থার্ঁ कल्याणीसावदानि जनेभ्य 0 ब्रह्म 'ाणन्याभ्या श्रद्राय আহবান च स्वाय चारणातय 0 वजु झ० २६ 1 २




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