जड़मूलसे क्रान्ति | Jadmoolse Kranti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
9 MB
कुल पष्ठ :
181
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१
दा विकल्प
लम्बे अरसेसे म मानता आया हूँ और कओ নাং कह भी चुक्रा
हूँ कि हमें अपने अनेक विचारों ओर मान्यताओंको जड़मूलसे सुधारनेकी
ज़रूरत है | हमारे क्रान्ति सम्बन्धी विचार ज्यादातर ऊपरी सुधारों तक ही
सीमित हैं, मूठ तक नहीं जाते | झिनमेंसे कुछ विचारोंकोः यहाँ में
व्यवस्थित रूपमें पेश करनेकी कोशिश करूँगा ।
सबसे पहले में अपने धार्मिक और सामाजिक रचना सम्बन्धी विचारोंको
लेता हूँ; हमें नीचे दिये हुओ दो विकल्पोंमेंसे किसी अकको निश्चित रूपसे
अपना लेना चाहिये | ।
१. या ता मि. संजाना क्गेरा टीकाकारोंके मतानुसार हमे मान
लेना- चाहिये कि जाति-भावना अक असा संस्कार ओर ओक असी
संस्था है, जो हिन्दू-समाजमेंसे कभी हट नहीं सकती । जातिदीन
दिन्दु-समाजकी स्वना दोना असम्भव दै । जिसलिशे जिस हक़ीक़तको
मानकर दी हमे देशकी राजकीय वशरा व्यवस्थार्ओपर विचार करना
चाहिये । मनु आदि स्मृतिकारोंने असा दी किया था | अनकी कोशिश
सबको अख अला रखकर उनमें अक किस्मकी ओकता कायम करनेकी
थी । हिन्दुस्तानपर मुसलमानोंका आक्रमण होनेसे पहले असा करेनेमें
कोओ कठिनाओ नहीं हुओ | जिसके दो कारण थे: ॐक तो तष
देश जितना विशाल ओर समृद्ध था कि सबको अलग अलग रखकर
अन्हें जीनेकी सुविधा दी जा सकती थी। आजकी तरह वह ज़रूरतसे
ज्यादा आवाद और शोषित नहीं था; और दूसरे, मुसल्मानेकि आनेसे
पहले यहँकि सभी देशी या विदेशी समाज अनेक देवी-देवताओं और यज्ञोंकी
अपासना करनेवाले थे । जिसलिभे पचास देवताअओंके साथ जिक््कावनवें
देवको मान्यता देने ओर अक या दूसरे मुख्य देवमें अुसका किसी तरह
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