बुद्ध और महावीर | Buddh Aur Mahaveer

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Buddh Aur Mahaveer  by किशोरलाल घनश्यामलाल मारारुषाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mararushala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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(জা) ४ आत्मा सत्य-फाम सत्य-संकल्प है?” यह बेद-वाक्य है । हम जो धारण करें, इच्छा करें, वह प्राप्त कर सकें, यह इसका अथ होता है। जिस शक्ति के कारण अपनी कामनाएँ सिद्ध होती हैं उसे ही हम परमात्मा, परमेश्वर, त्रह्म कहते हैं। जान-अनजान में भी इसी परमात्मा की शक्ति का अवलंबन-शरण लेकर ही हमने आज की स्थिति प्राप्त की है और भविष्य की स्थिति भी शक्ति का अवलंबन लेकर प्राप्त करेंगे। रामऋष्ण ने इसी शक्ति का अवलंबन लेकर पूजा के योग्य पद को प्राप्त किया था ओर बाद में भी मनुष्य जाति में जो पूजा के पात्र होंगे, वे भी इसी शक्ति का अवलंबन लेकर ही । हममे आर उनमें इतना ही अन्तररैकि हम मूदतापूत्रंक, अज्ञानतापुवक इख शक्ति का उपयोग करते हँ ओर उन्होने बुद्धपू्व॑ंक उसका आलंबन किया है । दूसरा अन्तर यह है. कि हम अपनी क्ुद्र वासनाओंको ভূত करने में परमात्म-शक्ति का उपयोग करते हैं। महापुरुष की आकां- क्याएँ, उनके आशय महान्‌ और उदार होते हैं । उन्हींके लिए बे आत्म-बढ का आश्रय लेते हैं । तीसरा अन्तर यह है कि सामान्य जन-समाज महापुरुषों के चचनों का अनुसरण करनेवाछा ओर उनके आश्रय से तथा उनके प्रति श्रद्धा से अपना उद्धार माननेवाला होता है । प्राचीन शास्त्र ही उनके आधार होते हैं | महापुरुष केवछक शास्त्रों का अनुसरण करने- वाले द्वी नहीं; बे शास्त्रों की रचना करनेवाले ओर बदछनेवाले भी




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