जड़मूलसे क्रान्ति | Jadmoolse Kranti

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Jadmoolse Kranti by किशोरलाल घनश्यामलाल मारारुषाला - Kishorlal Ghanshyamlal Mararushala

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१ दा विकल्प लम्बे अरसेसे म मानता आया हूँ और कओ নাং कह भी चुक्रा हूँ कि हमें अपने अनेक विचारों ओर मान्यताओंको जड़मूलसे सुधारनेकी ज़रूरत है | हमारे क्रान्ति सम्बन्धी विचार ज्यादातर ऊपरी सुधारों तक ही सीमित हैं, मूठ तक नहीं जाते | झिनमेंसे कुछ विचारोंकोः यहाँ में व्यवस्थित रूपमें पेश करनेकी कोशिश करूँगा । सबसे पहले में अपने धार्मिक और सामाजिक रचना सम्बन्धी विचारोंको लेता हूँ; हमें नीचे दिये हुओ दो विकल्पोंमेंसे किसी अकको निश्चित रूपसे अपना लेना चाहिये | । १. या ता मि. संजाना क्गेरा टीकाकारोंके मतानुसार हमे मान लेना- चाहिये कि जाति-भावना अक असा संस्कार ओर ओक असी संस्था है, जो हिन्दू-समाजमेंसे कभी हट नहीं सकती । जातिदीन दिन्दु-समाजकी स्वना दोना असम्भव दै । जिसलिशे जिस हक़ीक़तको मानकर दी हमे देशकी राजकीय वशरा व्यवस्थार्ओपर विचार करना चाहिये । मनु आदि स्मृतिकारोंने असा दी किया था | अनकी कोशिश सबको अख अला रखकर उनमें अक किस्मकी ओकता कायम करनेकी थी । हिन्दुस्तानपर मुसलमानोंका आक्रमण होनेसे पहले असा करेनेमें कोओ कठिनाओ नहीं हुओ | जिसके दो कारण थे: ॐक तो तष देश जितना विशाल ओर समृद्ध था कि सबको अलग अलग रखकर अन्हें जीनेकी सुविधा दी जा सकती थी। आजकी तरह वह ज़रूरतसे ज्यादा आवाद और शोषित नहीं था; और दूसरे, मुसल्मानेकि आनेसे पहले यहँकि सभी देशी या विदेशी समाज अनेक देवी-देवताओं और यज्ञोंकी अपासना करनेवाले थे । जिसलिभे पचास देवताअओंके साथ जिक्‍्कावनवें देवको मान्यता देने ओर अक या दूसरे मुख्य देवमें अुसका किसी तरह ३




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