लोपामुद्रा | Lopamudra

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १३ ) बात मेंने ली हैं । विश्वामित्र के पिता गाघधि थे; उन्होंने अपनी कन्या सत्यवती भ्ुगु ऋचीक ऋषि को ब्याह दी थी। देवता की कृपा से एक ही समय में गाधि के विश्वरथ और ऋचीक के जमदग्नि नाम के पुत्र पैदा हुए । विश्वरथ ने राज्य छोड़कर विश्वामित्र नाम रख लिया और ऋषि बन गये । ऋग्वेद के प्रमाणानुसार लोपामुद्रा ऋषि थी। उसने अगस्त्य को ललचाकर अपना पति बनाया । इस प्रसंग के इस देवी के रचे हुए मन्त्र ऋग्वेद में हैं । इस समय आरयों और दस्युओं के बीच में रंग, धर्म और संस्कृति का भेद, संघर्ष का रूप घारण कर रहा था। शंबर ओर उसके साथी ओर दस्यु लोग लिंग की पूजा करते थ्रे। ये लोग शक्ति में, बीरता में, या सुख के साधनों में आरयों से फ्िसा प्रकार कम नहीं श्र, परन्तु विद्या ओर संस्कार में आयों से नीचे थ । जब दस्युओं को आयजन केंद करते, तब गुलाम बनाकर रखते थे ओर दाल शब्द गुज्ामों के लिए प्रयोग किया जाने लगा । एक बार आरयों के इतिहास में मुख्य प्रश्न यह उपस्थित हुआ कि विजित दस्युशा का क्या किया जाय ? यदि उन्हें मार डाला जाय, तो सेवा-चाक्री कौन करगा ? अरर जिन्दा रम्बा जाय, तो समाज मं उनका क्या पद होगा ग्रोर दासीपुच्र का कटम्बसं कानमा स्थान होगा ? इन प्रश्नां पर भयंकर लडाइयां हुई, सिर कट, विरोध ने उम्रतर रूप धाग्ण किया। कई विद्वान मानते हें कि वशिप्ठ शोर विश्वामित्र में जो विरोधभाव वडा, वद इसी समस्या को लेकर । वशिष्ठ रक्त-शुद्धि के प्रतिनिधि थे, तो विश्वामिनत्र दस्युओं को आय बनाने का रसायन तैयार कर रहे थ । य्रायैन्व कुछ जन्म से नहीं आता; बल्कि गायत्री मंत्र के जप से शुद्ध होकर सत्य और ऋत से प्ररित हो यज्ञोपव्रीत को पहनने से उसकी शुद्धि होती है । कोई भी मनुप्य नया जन्म ग्रहण कर सकता है, द्विज बनकर आय हो जाता है--यह रीति उन्होंने सिखाई ।




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