जैन दर्शन और विज्ञान | Jain Darshan Aur Vigyan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
102
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)परमाणुश्नों में ये श्रल्फा (१)/॥8) कण भरे पड़े हैं।
हमारे शास्त्रों की परिभाषा में यह बहा जायगा कि पारा
और सोना भिन्न-भिन्न पदार्थ नहीं हैं बल्कि एद्गल द्रव्य की
दो भिन्न-भिन्न पर्यायें हैं ग्रतएव इनवा परस्पर परिवतंन
प्रसम्भव बात नही है ।
भ्राज वैज्ञानिकों ने इस प्रक्रिया को साक्षात् करके दिखा
दिया है, यद्यपि व्यापारिक दृष्टि से इस प्रतोग को सफल
नहीं कहा जा सकता क्योंकि इस विधि से बनाया गया सोना
बहुत महंगा पड़ता है।
यदि पानी की एक नन््हीं व् द को काटकर दो खण्ड कर
दिये जायें श्रौर उन दो खण्डों को काटकर ४ खण्ड और इसी
प्रकार ४ के ८५, ८ के १६, १६ के ३२ करते चले जायें तो
कुछ समय परचात् पानी की एक टननी नन्ही-मी बूद रह
जायेगी कि जिसके आगे खण्ड करना संभव नहीं होगा। इस
भ्रत्यन्त नन्हीवूद को पानी का मोलीक्युन (,५।८८८) या
जन शास्त्रों को परिभाषा में स्कन्ध कहते हैं। यह ग्राजकल का
एक सर्वेसिद्ध तथ्य है कि हाइड्रोजन को जलाने से पानी बन
जाता है। पूर्ण विश्लेषण से ज्ञात हुआ है कि जल के एक स्कन्ध
में दो परमाणु हाइडोजन के और एक परमाणु प्राक्मीजन का
होता है ।
মী সিল লন্বী--নন্ত্ী নুহ का वर्णन किया गया है
उसको भ्रगर आगे काटने की श्रौर चेश्टा की जातो है तो
जल का अस्तित्व ही मिट जाता है और हाइड्रोजन व
झ्रावती जन अलग-प्रलग हो जाते हैं। दूसरे शब्दों में जल का
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