धर्म परीक्षा | Dharam Prikchha (1978) Ac 6784
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
17 MB
कुल पष्ठ :
427
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना
धर्मपरीक्षा
१, हस्तलिखित व्रन्थोंकी संकलित सूची देखते समय धर्मपरीक्षा नामक जैन ग्रन्योंको एक बहुत बड़ो
संश्या हमें दृष्टियोचर होती है। इस लेखमें हम विशेषतया उन्हीं धर्मपरीक्षाओंका उल्लेख कर रहे हैं, जिनकी
रचनाओमें असाधारण अन्तर है ।
'[१] हरिषेणकृत धर्मपरोक्षा--यहु अपअ्रंश भाषामें है और हरिषेणने सं. १०४४ (-५६ सन् ९८८)
में इसकी रचना की है ।
[२] दूसरी धर्मपरीक्षा अमितगतिको है। यह भाषवसेनके शिष्य थे। ग्रन्थ सस्कृतमे है भौर
सं. १०७० ( सन् १०१४ ) में यह पूर्ण हुआ ।
[३] तीसरी धर्मपरीक्षा वुस्तविछासकों है। यह कन्नड़ भाषामें है और ११६० के लगभग इसका
निर्माण हुआ है।
[४] चौथी संस्कृत धर्मपरीक्षा सौभाग्यसागरकी है। इसकी रचना सं. १५७१ (सन् १५१५) की है ।
[५] थाँचवीं संस्कृत धर्मपरीक्षा पद्मसागरकी है। यह तपागच्छीय धर्मखागर गणीके शिष्य थे । इस
प्रन्थकी रचना सं, १६४५ ( सन् १५८९ ) में हुई ।
[६] छठो संस्कृत 'र्मपरीक्षा जयविजमके शिष्य मानविजय गणीकी है, जिसे उन्होंने अपने शिष्य
देवविजयके लिए विक्रमकी अठारहवीं शताब्दोके मष्यमें बनाया था ।
[७] साथवीं घर्मपरीक्षा तपागच्छोय नयविजयके शिष्य यशोविजयकी है । यह सं. १६८० मं उत्पन्न
हुए थे और ५३ वर्षकी अवस्थामें परछोकवासी हो यये थे । यह प्न्य सस्कृतमे है जौर वृत्ति सहित है ।
[८] आठवीं धर्मपरीक्षा लपागच्छीय सोमसुन्दरके क्षिष्य जिनमण्डनको है।
[९] थर्वीं धमंपरीक्षा पाध्वकीतिकी है ।
[१०] दसवीं घर्मपरीक्षा पृज्यपादकी परम्परागत पद्मनन्दिके शिष्य रामचन्द्रकी है जो देव चन्द्रकी
प्रार्थनापर बनामी गयी ।
मथपि ये हस्तकिलित रुपमें प्राप्य हैं ओर इनमें-से कुछ अभी प्रकाशित भी हो चुकी हैँ । लेकिन
अबतक इतके अन्तर्गत विधयोंका अन्य ग्रस्थोंके साथ सम्पूर्ण आालोचनात्मक तथा तुलनात्मक अष्ययन नहीं
किया गया है तबतक हममें-से अधिकांश हमारे लिए नाममात्र ही हैं ।
२. यह अमितगतिको धम्मपरीक्षा है, जिसका पूर्ण रूपये अध्ययन किया गया है। मिरोनोने इसके
विययोंका सबविस्तर विदलेषण किया है। इसके अतिरिक्त इसको भाषा और छन्दोंके सम्बन्ध्में आलोचनात्सक
रिम्रार्क भी किये हैं। कहालीकी कथावस्तु किसी भी तरह जटिल नहीं है। मनोवेग जो जेनधर्मका दृढ़ अद्धानी
है, अपने मित्र पद्मबेगको अपने अमोष्ट धर्ममें परिवर्तित करना चाहता है और उसे पाटलिपृत्रमें ब्राह्मणोंकी
सभागें के जाता है। उसे इस बातका पक्का विव्वास कर लेना है कि ब्राह्मणवादी मूर्स मनुष्योंकों उन दस
१, अनेकास्स वर्ष ५, कि. १, प, ४६ आदि से सामार-उद्पृत । '
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