दशवैकालिक सूत्र | Dasvaikalik Sutra
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
228
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about पंडित श्री घेवरचंद जी बांठिया -pandit shri ghevarchand ji banthiya
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)दशवेकालिक सूत्र श्र० ३ ७
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^ च. चेदेक. दे चेद ददे “द २. -द- ८६“ हे ६: २.६.३२ ये “द पे
बन्धनो से रहित, छह काय जीवों के रक्षक, उन परिग्रह् रहित
महषियो के लिए, ये आगे कह जाने वाले अनाचीर्ण भ्र्थात्
` अनाचार है ! ये निग्रन्थो के लिए त्याज्य है ।९॥
उदहेसियं कौयगड, नियागमभिहडाणि य !
राइभक्ते सिणाणे य, गंधसल्ले य वीयणे ॥२॥
१ औद्शिक, २ साधु के लिए खरीदा हुआ, ३ किसी
का आमसन््त्रण स्वीकार कर-उसके घर से आहारादि लेना
अथवा प्रतिदिन एक ही घर से आहारादि लेना, ४ साधु के
लिए सामने लाया हुआ आहारादि लेना, ५ रात्रिभोजन, ६
स्तान करना, ७ सुगन्धित पदार्थो का सेवन करता, ८ फूलादि
की माला धारण करता, और &€ पंखा आदि से हवा करता ।
संनिही गिहिसले य, रायपिडे किमिच्छए ।
संवाहणा दंतपहोयणा य, संपुच्छणा देहपरोयणा य ॥
१० घी गुड श्रादि वस्तुग्रो का संचय करना, ११ गृहस्य
कै वर्तन मे भोजन करना, १२ राजपिण्ड का ग्रहण करना,
१३ (तुमको क्या चाहिए इस प्रकार याचक से দুল कर जहां
उसकौ इच्छानुसार दान दिया जाता हो एसी दानगाला आदि
से आहारादि लेना, १४ मर्दन करना, १५ गोभा के लिए दांत
धोना, १६ गृहस्थो से सावद्य कुशल प्रन आदि पूना, १७
दर्पण आदि में अपना मुख आदि देखना, ये अनाचार हैं ॥३॥
अद्वावए य नालोए, छत्तस्स य धारणद्वाए ।
तेगिच्छं पाहणा पाए, समारंभं च जोडणो }४॥
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