वेद रहस्य खंड १ | Vaid Rahasya Khand-1

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रदन और उसका हल है रिसी पुर्ववर्ती घून्य से नहीं निकढ आयी है । प्रगति करता हुआ मानव सन शुक ज्ञान से दूसरे ज्ञान तक पहुचता है या फिसी ऐसे पर्ववर्ती ज्ञान को जो कि घुघला पड गया है और ढक गया हूँ फिर से नया करता हूं और वृद्धिगत करता हैं अयवा किन्ही पुराने अघूरे सूतों को पवडता और उनके द्वारा नये आविष्वारो वो प्राप्त करता हैं। उपनिपदो के विचार अपनेसे पहले विद्यमान पिन्ही महान उद्भवों वी वत्पना करते हैं और ये उद्भव प्रचलित वादों के अनुसार कोई भी नहीं मिलते ।. और इस रिक्त स्थान को भरने के लिये जो यह कत्पना गढ़ी गयी हैं कि ये विचार जगली आर्य आशाम्ताओं ने सभ्य दाविड लोगों से लिये थे एक ऐसी अटवाल है जो केवल दूसरी अटकलों द्वारा ही सपुप्ट की गयी हैं। सचमुच यह अब झकास्पद हो चुंवा हैं कि पन्‍्जाव द्वारा आरयों के आनमण करने की कहानी कही मापाविज्ञानियों की गढन्त सो नही है। अस्तु । प्राचीन पोरप में जो चौद्धिक दर्शनों के सम्प्रदाम हुए थे उनसे पहले रहस्य खादियों के गुह्यसिद्धा्तो का एक समय रहा था औफिक 01 ८ भौर . एलूसिनियन फटा 211 रहस्यविद्या ने उस उपजाऊ मानसिक क्षेत्र को तैयार किय। था जिसमेंसे पिथागोरस और प्लंटो की उत्पत्ति हुई। इसी प्रकार का उद्गमस्थान भारत मे भी आगे के विचारों की प्रगत्ति के लिये रहा हो यह बहुत सभवनीय प्रतीत होता है। इसमें सन्देह नहीं कि उपनिपदो में हम जो विचारों के रूप और प्रतीक पाते हैं उसका बहुत भाग तथा ब्राह्मणों की विपय- सामग्री वा वहुतसा भाग भारत में एक ऐसे काल की कल्पना करता है जिस समय में विचारों ने इस प्रकार की गुह्य शिक्षाओं का रूप या आवरण धारण किया था जेसी हरि ग्रीक रहस्यविद्याओ की शिक्षा थी । दूसरा रिक्त स्थान जो अभीतक माने गये वादों द्वारा भरा नही जा सका हूँ वह वह लाई है जो कि एक तरफ वेद में पायी जाती वाह्य प्राइतिक शक्तियों की जइ-पूजा को और दूसरी तरफ प्रीक लोगो के विकसित धर्म को तथा उपनिपदों और पुराणों में जिन्हें हम पाते है ऐसे देवताओ के कार्यों के साथ सम्बन्धित किये गये मनोवैज्ञानिक और आध्यात्मिक विचारों को विभकत करती हैं। क्षण भर के लिये यहा हम इस मत को भी स्वीकार किये लेते हे कि मामवधेम का सबसे सु




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