श्रीचौबीसी पुराण | Shree Chobisi Puran

लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
276
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about पं पन्नालाल जैन साहित्याचार्य - Pt. Pannalal Jain Sahityachary
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)# चौबीस तीथकर पुराण # ११
नव उसको जायु सिं ष्ट माहकी बाकी रह ग्र तथ उसके कंठमें पड़ी हुई
माल सुरा गई, कस वृत कान्ति रहित हो गये थौर मणि ुक्ता आदि समो
बरतुएं प्रायः निष्प्रससी हो गई | यह सब देखकर उसने सम्रक लिया कि मेरी
आयु अब छह माहकी ही बाकी रह गई है। इसके बाद झुझे अवश्य ही भर
लोकमें पैदा होना पड़ेगा । प्राणी जैसे काम करते हैं वैसा ही फल पाते हैं।
मेंने अपना समस्त जीवन भोग विलासोमें बिता दिया। अब कप्रसे कम इस
शोष आयुमे समे धमं साधना करना परम आवश्यक है । यह बिचार कर पहले
लंलितांग देवने समस्त अक्लतिम चैत्पालयोंकी बन्दना की फिर अच्युत स्वर्ग
में स्थित जिन प्रतिमाओंकी पूजा करता हुआ समता सन्तोषसे सभय बिताने
लगा। अन्तमें समाधि पूर्वक पंच नमस्कार सम्त्रका जाप करते हुए उसने देव
शरीरको छोड़ दिया।
, * जम्बद्वीपके सुमेरु पवेतसे पृवेकी ओर विदेह क्षेत्रमें एक पुष्कलावती देश
है उसकी राजधानी उत्पलखेद नामकी नगरी है। उस समय वहां वजवाहु
राजा राज्य करते थे। उसकी स्त्रोका नाम वसन्धरा था। राजा बजबाह बसु
सारा रानीके साथ भोग 'मोगते हुए इन्द्र-इन्द्राणीक्री तरह आनन्दसे रहते थे
जिसका कथन ऊपर कर आये हैं वह लल्ितांग देव स्वगंसे चयक्तर इन्दं थन्र-
बाह ओर वसुन्धरा राज दप्वतीके बजजंघ नामका पुत्र था । वनूरजय
अपनी मनोरम चेष्डाओंसे सभीको हृषित करता था। वह चन्द्रमाक्ी नाई
मालूम होता था क्योंकि चन्द्रमा जिस तरह कुछुदोंकों विकसित करता है उसी
तरह बज जंघ भी अपने कुटम्थी कुछुदोंकों विकसित-हर्णित करता था। चन्द्रमा
जिस तरह कलाओंसे शोमित होता है उसी तरह धन् जंघ मी अनेक कलाओं
चतुराइयोंसे भूषित था। चन्द्रमा जिस प्रकार कमलोंको संकृचित करता
उसी प्रकार वह भी छात्र रूपी कमलोंकों संकुचित शोभाहीन करता था और
चन्द्रमा जिस तरह चांदनीसे खुहावना जान पड़ता है उसी तरह वजूअंध भी ।
मुसकान रूपी चांदनीसे सुहावना जान पड़ता था। छलितांगका सत स्वय प्रभा
देवीमें आसक्त था, इसलिये वह किसी दूसरी स्त्ियोंसे प्रेम नहीं करता था।
बस उसी संस्कारसे बज जंघका चित्त किसी दूसरी स्थ्ियोंदी ओर नहीं भुकता
अट
User Reviews
No Reviews | Add Yours...