पंचसंग्रह | Panch Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १६ ) सामायिक, तथा चउविहार करते है। चतुदर्शी का उपवास तथा मासिक आयम्बिल भी करते है । आपने अनेक अठाइयाँ, पचाले, तेले आदि तपस्या भीकीहै। ताम्बरमू मे जेन स्थानक एव पाठशाला के निर्माण मे आपने तन-मन-धन से सहयोग प्रदान किया ¦ अप एस० एस० जैन एसोसियेशन ताम्बरम्‌ के कोपाध्यक्न हैँ 1 आपके सुपुत्र श्रीमान ज्ञानचन्द जी एकं उत्साही कतंव्यनिष्ठ युवक हैं। माता-पिता के भक्त तथा गुरुजनो के प्रति असीम आस्था रखते हुए, सामाजिक तथा राष्ट्रीय सेवा कार्यो मे सदा सहयोग प्रदान करते है । श्रीमान ज्ञानचन्दजी की धमेपत्नी सौ° खमाबाई (सुपृत्री श्रीमान पुखराज जी कटारिया राणावास) भी आपके सभी कार्यो मे भरपूर सह- यौग करती है। इस प्रकार यह्‌ भाग्यशाली मूणोत परिवार स्व० गुरुदेव श्री मरुधर केदारी জী महाराज के प्रति सदा से असीम आस्थाशील रहा है। विगत मेडता (वि० स० २०३६) चातुर्मास मे श्री सूर्य मुनिजी की दीक्षा प्रसग(आसोज सुद १०)पर श्रीमान पुल राज जी ने गुरुदेव की उस्न के वर्षो जितनी विपुल धन रारि पच सग्रह प्रकाशन मे प्रदान करने की घोषणा की । इतनी उदारता के साथ सत्‌ साहित्य के प्रचार-प्रसार मे सास्कर- तिक रुचि का यह्‌ उदाहरण वास्तव मे ही अनुकरणीय व प्रश्ञसनीय है । श्रीमान ज्ञानचन्द जी मुणोत की उदारता, सज्जनता ओर दानशीलता वस्तुत आज के युवक समाज के समक्ष एक प्रेरणा प्रकाश है । हम आपके उदार सहयोग के प्रति हादिक आभार व्यक्त करते हए आपके समस्त परिवार की सुख-समृद्धि कौ शुभ कामना करते है । জান इसी प्रकार जिनशासन की प्रभावना करते रहे--यही मगल कामना है। मन्ती- पुज्य श्री रघुनाथ जेन शोध.सस्थान जोधपुर




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