विहार और प्रचार भाग - 2 | Vihar aur prachar bhaag - 2

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Vihar aur prachar bhaag - 2 by बनवारी लाल - Banwari Lal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१५ फरमाने पर्‌ वह्‌ मान हो गया तथा हजारों को संख्या में लोगों के सामने प्रपमानित होकर चला गया । इन घटना से जन समाज का कितना गौरव व्रा) प्रतः इस प्रकार के उत्तरदायित्त्वपूर्ण पद पर ऐसे पंनू डरपोक व्यक्त को नियुक्त करने से ही समाज का गौरव कैसे बढ़ सकता है ? इस पुस्तक में जो चित्र दिये जा रहे हैँ वह सुशील कुमार सुपुत्र रोशनलाल जैन स्थालकोट निवासी की प्रेरणा से दिए जा रहे हैं। केवल परिचय प्रीर्‌ इतिहास रूप में दिये जा रहे हू न कि वन्दन नमस्कार के लिये क्योंकि महाराज श्री जड़पूजा के कट्टर विरोधी थे । े नोट--स्मरण रहे पाठक गण इस पुस्तक को इतिहास के रूप में अपने पास रखें क्योंकि महाराज श्री का जीवन ही इतिहास रूप था इस बात को पाठक साधु और सद्‌ ग्रहस्थियों के लेखों को पढ़कर स्वत: जान सकेंगे ।




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