जैन धर्म की हजारशिक्षाएं | Jain Dharm Ki Hajar Shikshayein

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Jain Dharm Ki Hajar Shikshayein by मधुकर मुनि -Madhukar Muni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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£ हैं | अन्य धर्मों की भांति इस हूँष्टि से जैनधर्भ भी अत्यन्त सम्पक्नें है । प्राचीनकाल' से लेकर अब तक जैनाचार्यों ने ऐसा बहुत-सा साहित्य रची है, जो न केवल मानव-जीवन के मर्म को उद्घाटित करता है अपितु उस पर चलने को उत्प्रेरित भी करता है 1 मुझे यह देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई कि जैनश्परेताम्बर स्थानकवासी' परम्परा के विद्वान्‌ संत श्री 'मधुकर' मुनि [मुनि श्री मिश्रीमलजी | ने भ्रनेक जन ग्रन्थों का अध्ययन-अनुशीलन करके प्रस्तुत पुस्तक का संकलन किया है । लेखक हिन्दी, संस्कृत, प्राकृत, अपश्र श॒ अदि भाषाओं के विद्वान है, और उनका अध्ययन काफी व्यापक है यह्‌ तो प्रस्तुत संकलन सेहीस्पष्टहौोजातादहै। वे कई ग्रन्थों के प्रणेता हैँ । साधना के सूत्र, अन्तर की ओर' [भाग १-२] आदि के अतिरिक्त जैन कथामालाके अन्तरगत उनके छह भाग प्रकाशित हो चुके हैं। और करीब २० भाग प्रकाशनाधीन हैं । वह कुशल वक्ता भी हैं। उन्होंने--भगवान महावीर, आचाय॑ भद्वबाहु, आचायें कुन्दकुन्द, आचार्य जिनसेन, आचाय॑े हरिभद्र, उमास्वाति, सिद्धसेन, स्वामीकातिकेय, क्षमाश्नमणजिनभद्रगणी, संघदास- गणी, आचायं हेमचन्द्र, आचायं सोमदेव प्रभृति महापुरुषों के चुने हुए वचन इस पुस्तक में संग्रहित किए है। जीवन की उत्कृष्टता के लिए जो भी विषय आवश्यक है, उसका समावेश उन्होंने इसमें किया है । जीवन के ऊध्व॑मुखी चितन एवं उत्थान की प्रेरणा इन सुभाषितों में झलक रही है । पुस्तक की व्शिषता यह है कि लेखक की हृष्टि व्यापक रही है गौर उन्होने दिगम्बर, श्वेताम्बर, तेरापंथी, स्थानकवासी आदि किसी भी आम्नाय के साहित्य को छोड़ा नहीं है। लगभग सी ग्रन्थों मे से एक हजार शिक्षाएँ छांटकर निकालना गागर में खागर भरने के समान है और इस कार्य को मुनिवर ने बड़ी सुन्दरता ब देक्षता से सम्पन्न किया है। सुभाषितों के चुनाव के विषय में मतभेद हो सकता है, लेकित इसमें संदेह नहीं कि संकलनकर्ता का ध्येय ऊंचा और विशाल रहा है ।




User Reviews

  • Jain Sanjeev

    at 2019-09-11 08:47:43
    Rated : 8 out of 10 stars.
    "Very Nice Book"
    Soo much like this
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