खून के धब्बे | Khoon Ke Dhabbe
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
8 MB
कुल पष्ठ :
145
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)युग-सन्धि
उस दिन साँकको जब दिन-भरका थका-हारा खग अपने धोंसले
पर लौया, तो उसने देखा कि कोई अ्परिचित खगी उसके घोंसलेके बाहर
डालपर बैठी है उसे देखकर भी जैसे खगने न देखा हो, रेखा श्रजान
बनकर वह उसके पाससे फुदककर अपने घोंसलेमें चला गया ।
पर घोंसलेमें वह निर्श्चित होकर नहीं बेठ सका | उस अपरिचित किंतु
तरुणी खगीकी उपस्थितिने उसके मनमें एक अ्रजीब उथल-पुथल पैदा
कर दी थी | उसका दिल तेजीसे बुक घुक् कर रहा था। न जाने क्या सोच
कर उसका रोम-रोम पुलकित हो उठा और उसके पहुई जैसे दिन-भरकी
थकान भूलकर फिर आकाश नापनेको उतावले हो उठे । दबे पाँव वह धीरे-
धीरे अपने घोंसलेके द्वारपर आया और उम्रककर बाहर बैठी हुई खगीकी
और देखने लगा।
इसी समय उसकी खगीसे चार आँखें हुईं | वह भी न मालूम
कबसे अपनी गदंन ऊपर उठाये उसके द्वारपर पलक-पाँवड़े बिछाये थी ।
दोनोंने एक-दूसरेकी आँलोंकी भाषा पढ़ी ओर मुस्कराये | पर अपनी तस्कर-
बृत्तिमें पकड़े जानेके कारण खग कुछ मेंप-सा गया और उसने अपनी
आँखें नीची कर लीं |
यह देख खगी ठहाका मारकर हँस पड़ी। उसका ऐसा करना
मानों खगके पौरुषको चुनौती थी | उससे भी अब रहा न गया | फुदककर
वह धोंसलेसे बाहर डालपर आ बैठा और बनावटी क्रोधके साथ बोला---
च्प्रोजी, ठम हँसो क्यों ! मेरे ही धरपर आकर मेरी ही हँसी उड़ानेकी
तुम्हारी यह मजाल कैसे हुई ?
खगी पहले तो कुछ सकुचाई, फिर जरा सहमकर बोली--'्यों, क्या
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