श्रावक के चार शिक्षा व्रत | Saravak Ke Char Shiksha Varat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
168
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about जवाहिरलाल जी महाराज - Jawahirlal Ji Maharaj
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)७ घिषय-प्रवेश
देता है। इस त्रत का विशेष सम्बन्ध बाह्य जगत से है। इस
व्रत का प्रचलित नाम 'क्षतिधि संविभाग' है, लेकिन शास्त्रों में इस
व्रत फा नाम हा संविभाग” बताया गया है। इस नाम का
यह भावे भी है कि अपने खान-पान के पदां के प्रति ममत्व या
ग्द्धि भाव न रख कर उनका भी विभाग करता और खाधु आदि
को देने की भावना रखना । यद्यपि इस ब्रत के पाठ में झ्ुख्यता
साधु की दी है लेकिन आशय बहुत ही यहन है। रक्ष्याथं बहुत
बिश्षार है । इस प्रकार यह् जत, श्रावक की उदारता और विशाल
भावना का লাজ जगत फो परिचय देता है ।
सारांश यह है कि ये चारों शिक्षा ब्रत श्रावक के जीवन को
पवित्र उन्नत तथा सादश बनाते हैं। साथ ही श्रावक को, उप-
स्थित सांसारिक प्रसह्ों में न फँसने देकर संसार व्यवहार के प्रति
जछ-फमछ्वत बनाये रखते हैं। इसलिए इन त्रतों का जितना
भी अधिक आचरण किया जावे, उतना ही अधिक छाभ है।
के ©
४४८ টে? 63
श
User Reviews
No Reviews | Add Yours...