श्रावक के चार शिक्षा व्रत | Saravak Ke Char Shiksha Varat

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Saravak Ke Char Shiksha Varat by जवाहिरलाल जी महाराज - Jawahirlal Ji Maharaj

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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७ घिषय-प्रवेश देता है। इस त्रत का विशेष सम्बन्ध बाह्य जगत से है। इस व्रत का प्रचलित नाम 'क्षतिधि संविभाग' है, लेकिन शास्त्रों में इस व्रत फा नाम हा संविभाग” बताया गया है। इस नाम का यह भावे भी है कि अपने खान-पान के पदां के प्रति ममत्व या ग्द्धि भाव न रख कर उनका भी विभाग करता और खाधु आदि को देने की भावना रखना । यद्यपि इस ब्रत के पाठ में झ्ुख्यता साधु की दी है लेकिन आशय बहुत ही यहन है। रक्ष्याथं बहुत बिश्षार है । इस प्रकार यह्‌ जत, श्रावक की उदारता और विशाल भावना का লাজ जगत फो परिचय देता है । सारांश यह है कि ये चारों शिक्षा ब्रत श्रावक के जीवन को पवित्र उन्नत तथा सादश बनाते हैं। साथ ही श्रावक को, उप- स्थित सांसारिक प्रसह्ों में न फँसने देकर संसार व्यवहार के प्रति जछ-फमछ्वत बनाये रखते हैं। इसलिए इन त्रतों का जितना भी अधिक आचरण किया जावे, उतना ही अधिक छाभ है। के © ४४८ টে? 63 श




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