ज्ञान वैराग्य प्रकाश | Gyan Vairagya Prakash

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Gyan Vairagya Prakash by खेमराज श्री कृष्णदास - Khemraj Shri Krishnadas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रयम किरण 1 १५ है इन्द्र बट सैकर्र हुसा दि किसी प्रकारसे इसके साथ भोग करना शाहिये । इन्द्र प्सी फिकरमें रने लगा जब कि इनको पर घात दगाये।कुछ बाण नीत गया तब एक दिन गौंतमजी पुष्कर तीर्यम स्नान कर- मकों गये पीऐसे सइन्या उसके प्रुजाफे बतनोंको साफ करने लगी. इतनेमें यीत्मसका रुप धारण फरफें एन गौतमके गूहमें घुसा भहस्पा उसकों पति जानकर खर्टी घगड तव रन्टने फटा हु प्रिये साज में बडा कामातुर हुआ हूं तुम जल्दी मेरे पास खातों । कहा. हैं. स्वामिन्‌ यह तो आपकों पुजाफा समय है समय नहीं है आप प्रजा कारियें मैंने. पूजाकी सब सामग्री सैयार फरदी हि इन्दने कहा है प्रिये आज मेंनें भानमीं पूजा करठी है तुम जन्दीय मारे पास छाती इनकी काम जल्दाये देता ऐै। इतना कहकर इन्द्रने अहस्थाकों पकटकर सपनी मनगानी प्रसनता करली | जब कि इन्द्र सहत्यासे भोग फर जुका इतनेमें गौतमजी आगये तद इन्द बिठारका रूप धारण करके मागने छगा । गीतमजीने कहा तू कौन है £ जो विजारके रूपको धारण करके मागा जाता है गौतमजीफ़े कोधते एन्द्रको इतना मय हुआ जो तुस्तद्दी तरिठारके रूपको स्पाग करके अपने कॉपता हुआ हाथ जोडकर तिनफे सम्मुख खा दोगया । इन्दकों देखतेही नौतमनें शाप दिया हु मूष्ट जिस एक मगके लिये यहांपर पाप के करनेके लिये साया था तेरे दारोरमें एक हजार मग होजायँगे।और अदत्याकों भी शाप दिया मांससे रहित पापाणग्रतू तेरा श्र टोजायगा । है चित्त खीफे संगसे ऐसी शन्द्रकी पाजीती हुई ॥ ३ ॥ अर बाकी फर्जीती को तुम्हारे प्रति सुनाते है-पमपुराण स्वगखण्ड अ० ईू में यद कथ दै हे नाम करके एक क्रण् था तिसकी ल्लीका नाम चशेवा था. एक दिय असाजी किसी कार्यके छिये तिस कषिके घरम गये।मागे वह ऋषि घरमें न था. तिसंकी ल्री घरमें थी उसने पाय करके न्र्माजीका बडा सत्कार.किया भर एक आसन उनके बैठनेको दिया 1 जब कि जसाजी आसतपर मैठें तब तिस पति्रताने जलाजीसे कहा मंगवन




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