दिनदयालगिरी ग्रंथावली | Dindayalgiri Granthawali

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Dindayalgiri Granthawali by श्यामसुंदर दास - Shyam Sundar Das

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( ६ ) [ उत्थानिकांकुर | कवित की जाति बहु भाँति गुनि रीत घुनि रूच्छना कहां हे वाच्य विंजना जनाओ में | भूपषन अनेक विधि दूपन न गिने जाहिं छंद के प्रबंधन के किमि के जनाओ में ॥ चसके न छूट नवरस के कविन पाहिं परे तिन बस के कहांते पार पाओ में | प्रशु रूप जस को बरनि मति करो सेत मन म॒द्‌ हेत घनस्याम शुन गाओ से ॥३७॥ कीजे छल छाँडि सेव राखिये न हिये भेव অহী লক্তী देव जाप॑ जाहि की प्रतीति है | तान सुर आम को न काम अनुरागं जान जासेों मन पागे तान लागे भरी गोति है॥ सँची रुचिराई मति राची अति जिन्हें पार सेई सुखदाई चलि आई यद रीति है। शेर सच फीकी राधापी के रूप হী के गद्यो साई लगे मीके जग जाप॑ जाकी प्रीति है ॥३८॥ | चात्सल्य-रख-बापी ] सेवन करत विधि आदि समकादि जास भेव न छहत सब देवन के पति है। कालऊ का कार जगजाल का विखाद नट जाहि বসি भ दीनार समु सेस करें नति हैं॥ नेति नेत्ति गाया बेद भेदहु न पाया मी, तासु माया पासु छाया अरु दाया जासु गति है। ताहि सख पाये लहि नाच कीं नचावे गहि मानि মান गोद छे खेलावे जसुमलि है ॥३९॥ कबधों पहिरि पीरे कगा को सजे गो लाल कच्षधोंघरनि घीर देक पदु राखिहे | रगरि रगारि करि अँचरा गहे गो हरि कब उरि गरि कगरि करि माषिहे ॥ मेरे अभिलाषन के पूरि कर साखन सों दाखन के संग कब माखन का चाखिहे। भैया यथा बलि बल भेया জী ইলা कब मैया मे।हि का कन्हेया कब भाषिहे ॥७०॥ मनि अंगनाई में निरखि प्रतिबिध्व निज्ञ बार बार ताहि चाहि गहिबे को धावे री । बाजति पेंजनी कै चक्तित हैत धुनि सुनि पुनि पुनि




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