अच्युत | Achyut

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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भाषि० ३२ १ू० १२) शाक्वरभाष्य-रत्नप्रभा-सापानुवादसहित ५८३ नक ननि या ण का 0 दथा प অপি ৯ শর্ত তি সির ইত সি সির ५ তা সপ ५ ५ + ५ ^ + আসল সপ উপ সিল এটা ५८ ५८ ५ সা সর্প ভিলা ५ ५८५ ५. माध्य (ब ° ३।८।८) इति चोपाधिमत्ताप्रतिषेधात्‌ । नहि निरुपाधिकः शारीरो नाम भवति । तस्मात्‌ परमेव ब्रह्म अक्षरमिति नियः ॥ १२॥ भाष्यका अनुवाद मन नहीं है ) इस प्रकार अक्षरमें उपाधिका प्रतिषेध किया है। उपाथिके बिना जीवत्व संभव नहीं है। इससे निश्चित होता है कि अक्षरशब्दवाच्य परब्रह्म ही है ॥ १२॥ পপি পাপা শী দিল ৩ শী পাস আসা পা শী পপ | এ পপ পা ৯৭ > न= > न~ म क कम ५०७ > रलप्रभा नहीति। शोषिते जीवत्व॑ नास्तीत्यर्थ:। तस्माद्‌ गार्गित्राक्षण॑ निर्गुणाक्षरे समन्वितमिति सिद्धम्‌ ॥१२॥ (३) ॥ रतनप्रमाका अनुवाद नहीं, इसपर कहते हैं---' नहि” इत्यादि । शोधितमें जीवत्व द नदीं दै अथात्‌ जीव उपाधिरहित नदी है ओर ज शोधित- निरुपाधिक दै, वह जीव नहीं हें । इससे सिद्ध हुआ कि गा्भिब्राह्मण निगुण अक्षरम समन्वित दै ॥१२॥ (अ त पि मि ० १ 1 9 1 1 7 ० जड़े




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