हिंदी साहित्य | Hindii Saahity

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Hindii Saahity by भोलानाथ - Bholanath

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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% हिन्दी साहित्य (१९२६-१९४७ ई०) जीवन से कुछ अधिक सम्पर्क स्थापित हुआ। जीवन पद्यात्मक कम ओर गद्यात्मक अधिक टै । इसय्यि साहित्य में गयको भो प्रतिष्ठा हुई । आज हिन्दी साहित्य में गद्य अधिक ओर पद्य कम होता जा रहा ৪ । परिवतन कुछ अनिवार्य कारणों से ब्रजभाषा गद्य में प्रयकत न हो सकी । खड़ी बोली उसको भाषा हो गई । फिर, इसमें पद्य लिखने की बात उठी | प्रारंभ में इस विचार का बड़ा विरोध हुआ । बहुत दिनों तक वाद- विवाद हुए । किन्तु समय की गति, समाज का मनोविज्ञान और परिस्थितियाँ एवं आवश्यकताएँ खड़ी बोली के पक्ष में थी। इस संघर्ष में खड़ी बोली की जीत रहो । आज परिस्थिति यह है कि ब्रजभाषा कौ कविता पिछले युग को चोज हो गई है। जन साधारण के सम्पक में आजाने के कारण हिन्दो के ललित साहित्य में जन साधारण के जीवन और उसके हृदय के विभिन्न स्वरूपों को भो स्थान मिला । कविता भक्ति और शथ्ूंगार एवं नीति की सामान्य बातों तक हो सोमित न रह सको । साहित्य मं विविधता आई । नये-नये विषयों को स्थान मिला। उच्चकोटि के कलापूर्ण वणेन मिलने लगे । बृद्धिवाद को प्रतिष्ठा हुई । तथ्यों कौ ओर साहित्थिकों का ध्यान गया । बाह्य के स्थान पर आन्तरिक का अधिक ध्यान रक्खा जाने टगा] कल्पना को स्वच्छदता मिली । यथार्थवाद को स्थान मिला । प्राचीन साहित्यिक आदर्श एवं रूढ़ियों से मुक्ति ली गई | इस संबंध में श्रीकृष्ण छाल ने लिखा हैं :-- “किन्तु पच्चीस वर्षों में ही एक अदभुत परिवर्तन हो गया । मुकक्‍तकों के बनखंड के स्थान पर महाकाव्य, खंड काव्य, आख्यानक काव्य (वैटड), प्रेमाख्यानक काव्य (मिट्रिकल रामांसेज़ ), प्रबंध काव्य, गीति काव्य, और गोतों से सुसज्जित काव्णोपवन का निर्माण होने लगा। गद्य में घटना-प्रधान, चरित्र-प्रधान, भाव-प्रधान, ऐतिहासिक तथा पौराणिक उपन्यास और कहानियों की रचनायें हुईं । समालोचना और निबंधों की अपूर्व उन्नति हुई। नाटकों की भी संतोषजनक उन्नति हुई । यद्यपि इनके विकास के लिये यह आधुनिक काल --साहित्यिक नियमों ओर विधानों का विरोधी काल--अत्यन्त अनुपयुक्त था क्‍योंकि नाटकों की स्थिरता और प्रभाव इन्हीं विधानों पर निर्भर है। केवल पचीस वर्षों में ही भाषा इतनी समृद्ध और शक्तिशालिनी हो गई कि उसमें उत्कृष्ट श्रेणी के गद्य और पद्म सरलतापूर्वक ढाले जाने लगे । ' इसके अतिरिक्त इस काट की एक अन्य महत्वपूर्ण बात उपयोगी साहित्य के सुजन की प्रवृत्ति है । मारत के प्राचीन काल के उपयोगी साहित्य, जैसे दशन, तकं, धर्म. आदि पर पस्तकं लिखी गईं । भौतिक विज्ञान, रसायन शास्त्र, राज- नीति, मनोविज्ञान आदि विषयों की पुस्तकों के लिये प्रधानतः: यूरोप और १ आधुनिक हिन्दी साहित्य का इतिहास पृष्ठ २




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