महादेवभाइकी डायरी दूसरा भाग | Mahadevbhaiki Dayari Dusra Bhaag

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Mahadevbhaiki Dayari Dusra Bhaag by रामनारायण चौधरी - Ramnarayan Chaudhry

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ও वहाँ भी दुराचारमें भाग लेनेवाले ओर ओअसका शिक्रार बननेवाले आदमी शिनतीके ही होते हैं । बढ़े जनसमुदायक्री तो अिस दुराचारका पता भी नहीं होता | वे तो सिर्फ भक्तिभावस्ते धार्मिक सन्‍्तोष ओर शान्ति प्राप्त करनेके लिे मन्दिरमे जति दै । | असे लोगोंको जो धामिक ओर आध्यात्मिक प्रेरणा ओर समाधान मन्दिरों द्वारा मिलता है, वह ओर किसी तरह नहीं मिल सकता | जिन लोगोंकों तो मन्दिर्की ज़रूरत हे ही। अिसलिओ मन्दिरोंका नाश नहीं, बल्कि मन्दिरोंका सुधार करनेको ज़रूरत है । । दूसरी ब्रात यह है कि गाँवोंके मन्दिरोंमें, जिनके आसपास देदातका सा सामाजिक जीवन गुँथा हुआ रहता है, अपर बताया हुआ कोओ अनाचार नहीं होता । जिन मन्दिरोंमें हरिजनोंको प्रवेश मिलते ही देहातमें अुनकोी जो बहिष्कृत दशा है, वह दर दो जायगी | मन्दिर-प्रवेशके साथ ही मूर्पिपरूजाका सव्ट स्वाभाविक स्यमे पेदा होता है । शांघीजीने अक वहनफे पतरके जवावमे मूतिपरूजाके बरिमं जो कुर लिखा है, वह बहुत मनन करने लायक है; “ अमुक् चीज़ मुझे सहायक नहीं होती, अिसलिओ दूसरोंके बारेमें में लापरवाह रहूँ ओर यह जाननेका कष्ट न करूँ कि वह आअनके लिओ सहायक होती है या नहीं, यह ठीक नहीं । में जानता हूँ कि अध्रुक प्रकारकी मूर्तिपूजा करोड़ों मनुष्योंको सहायक्र होती हैं| जिसका ,कारण यह भी नहीं कि आनका विक्रास मुझसे कम हुआ है . - - किसी-न-किसी रूपमें वह হম सबके लिओे आवश्यक हो जाती है । . . - मस्जदमें जाना ओर गिरजेमें जाना भी ओक तरहकी मूर्धिपूजा दै । बाभिबरिल, कुरान, गीता या असे किसी ओर प्रन्थके प्रति पुज्यमाव रखना भी मूर्तिपूजा दही है। आप किसी ग्रन्थया मकानकरा जुपयोग न करें ओर अपनी कब्पनामें ही परमेश्वका कोओ खास चित्र खींच ठं व असमं कुछ खास गुणोंका आरोपण करें, तो यह भी मूर्तिपूजा हुओ । जो पत्थरकी सूपिकी पूजा करते हैं, अुनकी प्रूजा जिन दूसरी पूजाओंसे ज्यादा स्थूल है, यह भीमे नहीं कहूँगा। बढ़े विद्वान न्यायाधीश भी अपने घरोंमें मृतियाँ रखते पाये गये हैं | पंडित मालवीयजी जैसे तत्वज्ञानी अपने ग्रहदेवशाका प्रजन किये बिना मुहमें अन्न नहीं डालते | असी पूजाको वहम माननेमें अज्ञान ओर अभिमान दोनों है। पूजा करनेवार्लेंकी कल्पनामें तो ओश्वरका अधिष्ठान मंत्रपुत पत्थरमें है, आसपास पड़े हुओ दूसरे पत्थरोंमें नहीं . . . किसी भी स्वरूपकी सन्वे दिखते कीं गओ पूजा, पूजा करनेवालेके लिभे ओक-सी अच्छी ओर फलदायक है | . . . पूजाकी खास विधि या शब्दको तरफ ओऔश्वर नहीं देखता | वह तो हमारे कृत्यों ओर हमारी वाणोके आरपार देख सकता है) ओर इम खुद ही




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