महादेवभाइकी डायरी दूसरा भाग | Mahadevbhaiki Dayari Dusra Bhaag
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
38 MB
कुल पष्ठ :
471
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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वहाँ भी दुराचारमें भाग लेनेवाले ओर ओअसका शिक्रार बननेवाले आदमी
शिनतीके ही होते हैं । बढ़े जनसमुदायक्री तो अिस दुराचारका पता भी नहीं
होता | वे तो सिर्फ भक्तिभावस्ते धार्मिक सन््तोष ओर शान्ति प्राप्त करनेके लिे
मन्दिरमे जति दै । | असे लोगोंको जो धामिक ओर आध्यात्मिक प्रेरणा ओर
समाधान मन्दिरों द्वारा मिलता है, वह ओर किसी तरह नहीं मिल सकता | जिन
लोगोंकों तो मन्दिर्की ज़रूरत हे ही। अिसलिओ मन्दिरोंका नाश नहीं, बल्कि
मन्दिरोंका सुधार करनेको ज़रूरत है । ।
दूसरी ब्रात यह है कि गाँवोंके मन्दिरोंमें, जिनके आसपास देदातका सा
सामाजिक जीवन गुँथा हुआ रहता है, अपर बताया हुआ कोओ अनाचार नहीं
होता । जिन मन्दिरोंमें हरिजनोंको प्रवेश मिलते ही देहातमें अुनकोी जो बहिष्कृत
दशा है, वह दर दो जायगी |
मन्दिर-प्रवेशके साथ ही मूर्पिपरूजाका सव्ट स्वाभाविक स्यमे पेदा होता
है । शांघीजीने अक वहनफे पतरके जवावमे मूतिपरूजाके बरिमं जो कुर लिखा है,
वह बहुत मनन करने लायक है;
“ अमुक् चीज़ मुझे सहायक नहीं होती, अिसलिओ दूसरोंके बारेमें में
लापरवाह रहूँ ओर यह जाननेका कष्ट न करूँ कि वह आअनके लिओ सहायक
होती है या नहीं, यह ठीक नहीं । में जानता हूँ कि अध्रुक प्रकारकी मूर्तिपूजा
करोड़ों मनुष्योंको सहायक्र होती हैं| जिसका ,कारण यह भी नहीं कि आनका
विक्रास मुझसे कम हुआ है . - - किसी-न-किसी रूपमें वह হম सबके लिओे
आवश्यक हो जाती है । . . - मस्जदमें जाना ओर गिरजेमें जाना भी ओक
तरहकी मूर्धिपूजा दै । बाभिबरिल, कुरान, गीता या असे किसी ओर प्रन्थके प्रति
पुज्यमाव रखना भी मूर्तिपूजा दही है। आप किसी ग्रन्थया मकानकरा जुपयोग न
करें ओर अपनी कब्पनामें ही परमेश्वका कोओ खास चित्र खींच ठं व असमं कुछ
खास गुणोंका आरोपण करें, तो यह भी मूर्तिपूजा हुओ । जो पत्थरकी सूपिकी
पूजा करते हैं, अुनकी प्रूजा जिन दूसरी पूजाओंसे ज्यादा स्थूल है, यह भीमे
नहीं कहूँगा। बढ़े विद्वान न्यायाधीश भी अपने घरोंमें मृतियाँ रखते पाये गये
हैं | पंडित मालवीयजी जैसे तत्वज्ञानी अपने ग्रहदेवशाका प्रजन किये बिना मुहमें
अन्न नहीं डालते | असी पूजाको वहम माननेमें अज्ञान ओर अभिमान दोनों है।
पूजा करनेवार्लेंकी कल्पनामें तो ओश्वरका अधिष्ठान मंत्रपुत पत्थरमें है, आसपास
पड़े हुओ दूसरे पत्थरोंमें नहीं . . . किसी भी स्वरूपकी सन्वे दिखते कीं
गओ पूजा, पूजा करनेवालेके लिभे ओक-सी अच्छी ओर फलदायक है | . . .
पूजाकी खास विधि या शब्दको तरफ ओऔश्वर नहीं देखता | वह तो हमारे
कृत्यों ओर हमारी वाणोके आरपार देख सकता है) ओर इम खुद ही
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