ताराबाई | Tarabai

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Tarabai by पं रूपनारायण पांडेय - Pt Roopnarayan Pandeyबाबू द्विजेन्द्रलाल राय - Babu Dwijendralal Ray

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पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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बाबू द्विजेन्द्रलाल राय - Babu Dwijendralal Ray

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला अंक । पहला रश्य । 'जयमलः, तीनां कुरर राज्य चित्तोरके । राना जो हा, प्राप्त राज्य-लक्ष्मी करे, तारा है उपयुक्त उसीके कामिनी । तम ०-- क्यों, क्या राना निबिवाद्‌ काइ नहीं सूय०-- तस०--- ही सकता हैं ? ठोक जान पड़ता नहीं । ज टल समस्या, भाग्यचक्रका फेर है । छोटा जयमल, नीच प्रकृतिका, प्रिय वही रानाका । प्रथ्वो उदार निर्भीक है, किन्तु असंयत हे स्वभाव, चलता सदा श्मोरराकी ही मान मन्त्रणा | संग ही है सुशील गुणवान । किन्तु उस पर नहीं रानाका है प्यार । कीन फिर कह सके--- राना होगा कोन ? पुरानी चाल है-- पुत्र बड़ा ही सदा राज्य पाया कर । सूर्य ०--मानेगा फिर कोन पुरानो चालको, राना अपने हाथ पिन्हादें जो मुकुट जयमलको ? इच्छा प्रधान है भूपको। जयमलको ही प्रजा जानतो, मानतो अपना भावी थूप | किन्तु क्या संग दी जन्म-स्वत्वको सहज छोड़ देगा भला ! प्रवो ही या शान्त रहेगा साधु हो ! तम ०- प्रथ्वोका क्या स्वत्व !?




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