श्री मोक्षमार्ग प्रकाशक | Moksha Marg Parkashan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
408
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)८4
शानपिपासुश्रोंकी तृप्तिका कारण बनी हुई है और श्रापके वचन प्राचीन आचार्योंको
तरह ही प्रमाण माने जाते हैं। स्वाभाविक कोमलता, सदाचारिता, जन्म-जात
विद्त्ताके कारण ग्रूहस्थ होकर भी आचायकल्प' कहलानैका सौभाग्य आपको ही
प्राप्त है । धर्म-जिज्ञासुस लेकर प्रीढ़ विद्वात सभीके लिये यह 'मोक्षमार्ग प्रकाशक' ग्रन्ध
गति उपयोगी सिद्ध हुआ है । श्राज तक ३४२०० पुस्तकें हिन्दी, गरुतराती, मराठीमें
छप चुकी हैं, वही इसकी उपयोगिता सिद्ध करती हैं ।
पण्डितजीका जन्म संवत् १७९७छके लगभग जयपुरके खंडेलवाल जैन
परिवार तथा 'गोदीका' मोन्नमें हुआ । जोगीदास आपके पिता थे और माताका नाम
रम्भावाई था। बचपनमें ही इनकी व्युत्पन्नमतिकों देखकर इन्हें खूब पढ़ाकर योग्यतम
पुत्र बनानेका निशुचय कर, ४-५ वर्षकी अ्रवस्थामें इन्हें पढ़ाने बठा दिया गया।
वाराणसीसे एक विशेषविद्वान इनको पढ़ानेके लिये बुलाया गया । पं० टोडरमलजीको
१०-१२ वर्षमें ही व्याकरण, न्याय एवं गणित-जैस कठिन विपयोंमें गम्भीर ज्ञान
प्राप्त हौ गया।
[ एक जनश्रुति श्री टोडरमलजीके जीवनके वारेभे सुनी जाती है कि--
एके नैन विद्वानने निमित्तज्ञान द्वारा जाना कि यह बालक अवश्य अपने जीवनमें धर्म-
धुरंधर वीरपुरुष होगा..., पश्चात् उन्होंने जयपुरके दीवान रतनचन्दजीसे निवेदन किया
कि यदि इस वालकको पढ़ानेके लिये मुझे समपित कर दें तो अल्प समयमें ही सर्वोत्तम
विद्वान बन जायगा । तब दीवान सा०» ने बड़े टूर्पके साथ, गाजे वाजेके साथ वालके
माता पिताके पास जाकर उसे पढ़ानेका सुझाव दिया, जिसे माता-पिताने सहर्ष स्वी-
कृत कर लिया । बालक थोड़ेसे समयमें ही पढ़कर आद्यातीत विलक्षण बड्धिमान
बन गया | |
इनकी स्मरणश्क्ति विलक्षण थी, गुरु जितना उन्हें पढ़ाते थे उससे श्रध्रिक
याद करके उन्हें सुना देते थे | इनके शिक्षक उनकी प्रतिभा एवं सातिथय व्यत्वन्नमति-
को देखकर दद्ध रह् जात शोर इनको सूक्ष्म: बुद्धिकी भूरि भूरि प्रशंसा करते थे |
मोक्षमाग प्रकाशक ग्रन्यकी भूमिकार्म स्वर्थंका परिचय दिया है कि “मैंने हस
कालभे भनुष्यपर्याय पायी, वहाँ मेरा पूर्व संस्कारसे वा भला होनहार था इसलिये मेरा
जनबमर्में अ्रभ्यास करनेका उद्यम हुआ । वह् कथन श्रापकी पर्वभवक्ती साधना श्रौर
वर्तमान असाधारण योग्यताको सूचित करता है। श्राप जन्मजबाहर तो थे ही, अपूर्य
पुरुषाथके बल द्वारा आप महत्वपूर्ण ग्रात्मप्रज्ञाके घनो वन गये | ग्रताव थोहे ही
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