आधुनिक हिंदी नाटक | Aadhunik Hindi Natak

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रसाद के नाटक (४ ये से परिशान्ति की ओर बहता हुआ मिलता है--श्रौर यही प्रसाद के नाटकों का 'प्रसादान्त' हे । चरित्र-प्रधान नाटक-- स्पष्टत: ये नाटक चरित्र के को लेकर चलते हैं ्यौर इनकी सबसे बढ़ी सफलता चरित्र-निर्माण में ही है । प्रसाद आधुनिक साहित्य के सबसे महान सष्टा थे । उन्होंने अपने नाटकों में झमर पात्रों की सृष्टि की दे जो सभी अपना स्त्रतस्त्र एवं प्राणवान व्यक्तित्व रखते हैं--दाशंनिक बिम्बसार श्रौर उनकी तत्वज्ञानी दारड्यायन का व्यक्तित्व भी किवना साफ श्मौर तीखा है ! कारण यह है कि पात्रों में प्राण फूकने वाली प्रतिभा की सजीवता और तीव्रता अद्वितीय थी । प्रसादजीके जीवन-रथ की परिधि भले ही घर से द्शाश्वमेघ और दशाश्वमेध से घरतक सीमित रह्दी दो, परन्तु उनका भोतिक,मानसिक एवं श्माध्यात्मिक जीवन चिर-गतिशील्न था--उसकी गति प्रेमचन्द की तरह विस्तार में श्रधिक नहीं बढ़ी, परन्तु अन्दर गहराई में बहुत दूर पहुँच गई थी। वे अत्यन्त प्राणवान कलाकार थे, उनके व्यक्तित्व की तीच्णता ने ही पात्रों की रूपरेखा को काट-छाँट कर इतनाती खा कर दिया था ।--एक दूसरे प्रकार से भी खष्टा ने झपने श्यापको स्रष्टि में व्यक्त किया है। प्रसाद के दृशन-कवित्व-मय व्यक्तित्व का थोड़ा बहुत अंश उनके सभी पात्रों ने प्राप्त किया दे । पुरुष- पात्र प्राय: तीन प्रकार के मिलते हैं-(१)जीवनके तत्वों को सुलभा ने वाले ततर-वेत्ता ाचाय, (२) जीवन-संग्राम में प्रवृत्त होकर जूभने वाले कमेंठ सेनिक, (३) राजपुत्रों को राजनीति के दाँव-पेच सिखाने वाले कूट-नीतिज्ञ । स्त्रियों मे भी स्पष्टतः कई श्रेणियाँ हैं--१-राजनीति की श्राग से खेलने वाली राजमंहिपियाँ २- जीवन-युद्ध में प्रेम का सम्बल लेकर कूदने बाली स्वाभि-मानिनी




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