आधुनिक हिंदी कविता और प्रसाद | Aadhunik Hindi Kavita Or Prasad

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Aadhunik Hindi Kavita Or Prasad by विनय मोहन शर्मा - Vinay Mohan Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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৮ [ «৭ ] घर धिपय में धाप्रया को न्यास की शराया न रएने से ये पिशेष रपसरमी न या सी । फछातः उनमें र्पायिस्य थे शा सका । লাল ই एयात्‌ হ্গ আমার पं० मद्यायोरप्रस्ता शमी एियेदी फे स्मर्यः दा सन्पादन-मार प्रद्य फरमे पर दिन्दीन्‍साद्ित्य उन्हीं फो पेन्द्र धनाझर गतिन्शील हुचा । दिन्द्र सार्हिप्य पर्‌ ঈলিহাঃ না নান प्त गया सगमग सन्‌ १९०४ म सन्‌ १९२० सके उन्दी आदहिरसयिक मन्यतां दौर पिदद्रामा श्न আশিকী दन्य सादिष्य- फारों ने अपनाने शी ইভা কী | 'याधुमिकता थी दूसरों भोद फे दर्शन यहीं से চান ६1 বাথ হ্চা্য सम्बन्धी उनदी धारणाझों को जान লা আহহ है । याप खिपखते (--- লালে হা उत्तियों के घित्र फा माम फविता है। नागा पक्ार के নানা ল তবে তৈ লনীমান অন সন লনা समाते, तथ ये आप-ऐ-धराप सुर के मार्ग मे (দুল হী হাট মীন বিঘু কথা हुई नहीं लेग्यङ ) यार निकलने लगते एँ; अर्थात थे मनोभाय शब्दों का स्परूप धारण फरते ह। यही फविता है ।”,,..., “झाज फल सलो्मोने फवरिताश्रीर पय फोप्कदी चीना सममः रण्या द । অহ আসল दे। फपिता झीर पद में थी भेद दे जो अंग्रेज़ी फी 'पोहट्रो! (70९15) श्र 'बस! (एलाऊए) में हे। किसी प्रमायोप्पादफ भौर मनोरंजक केस, यात या घकतृता का नाम कविता है, और नियमानुसार पे में विभाव-भनुमाव धाद से परिषष्ट इत्तना रस भरा हुभ्ा ऐ कि उसके स्वाद से ओठा पाठक तृप्त घो जायें, सदृदयता को प्यास घुकाने को उसे भगली-पिदली দধা पा सद्दारा न लेना पढ़, व 'मुक्तक লারা & | एिम्दी में 'मुछक! फो दी पुटकर कविता? कष्दते ৫ 1 शुर में कवि को गागर! में प्ागर' भरना पढ़ता दे । इसीलिये गेसे काव्य में सौन्दर्य भरने के लिए कवि को शब्दों फो अमिपा शक्ति से फम, ध्वनिव्यक्षना से भपिक काम लैना पड़वा ६ै। विद्वारी के दोदे! मुछक फा भच्धा उदाएरण के जाते 1




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