आनन्द प्रवचन (सातवा भाग ) | Anand Pravachan (Vol-7)
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
14 MB
कुल पष्ठ :
440
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रज्ञा-्परिपह पर विजय कैसे प्राप्त हो ” ५
इसलिए बन्युओं, हमे मिथ्याज्ञान अथवा अक्नान के अन्तर को समन्नते हुए
मम्यवलान या साध्यात्मिक जान दामि करना चाहिए। ऐसा करने पर ही
हमें आत्म-कल्याण का मार्ग हृष्टियोचर होगा और हम संवर कौ आराधना
बारते हए कर्मों की निर्ज रा मे भी सलरन हो सकगे ।
हमारे जाध्यान्मिक ग्रन्थ स्पप्ट बहते है---
नाण च दसण चेव, चरित्त च तवो तहा।
एस मग्गोत्ति पन्नत्तो, जिणेहि वरदसिहि ॥।
--श्री उत्तराध्ययनमघ्र, श्र° उ
अर्थात् जान, दर्शन, चारित्र एवं तप, इनका आराधन ही मोक्ष का मार्ग
है, ऐसा सर्व एवं सवदर्शी जिनराज कहते है ।
{जिन मगवान सर्वदर्णी होते 2 और वे एक स्थान पर रहकर ही सत्र कुछ
देख लेते है | उनकी दिव्यहृप्टि के सामने पर्वत, दीवाल, परदा या अन्य कोई
भी पस्लु बाघक नहीं वन सकती । जबकि हमारे समक्ष तो एक साधारण
परप्ष या परदा भी लगा दिया जाय तो उसके दूसरी ओर क्या हो रहा हैं
यह एम नहीं देख सकते !
आप विचार करेंगे कि आमिर हमारे समान मानवन्देह पाकर भी उन्हें
ऐसी दिय्यरृप्टि फँसे प्राप्त हो गई और हमे वह वयो नहीं मिल पाती ? इसका
रपप्ट और सत्य समाधान यही हैं कि उन महापुरपों ने ज्ञान, दर्शन, चारित्र
एव तप थी सम्यकू जाराधना की थी । अपनी आत्मा के निज स्वरूप की पह-
पान करते हुए उन्होंने विषय-विकारों का सर्व था त्याग करके अपनी आत्मा
को निर्मेल बनाया था | क़ोघ, मान, माया और लोस का उनके मानस के
सवधा निष्कासन हो चुका था । ज्ञान के गर्व को वे यथायं मे घो ऽग
मानते थे और उसमे कोसो दूर रहते थे ।
रिन््तु हम बया ऐसा कर पाते है * आध्यात्मिक ज्ञान तो दूर की दान 5.
चार पुरतयों पढ़कर हो हम घमड़ में चूर होकर औरा को झजानी हद इसके
आपको महातानी समझने लगते है । इसवा परिणाम प्ट লী উ সি
दृष्टि तो दूर, जो भी हम पढते है वहु मी हना जन ই =-= =
दनदर पनन पा फारण বলনা 8। দে কা তল উকীলললী আত
भारमसा থান না वारण वनता रै अनन नन ~ च -न्स्ज्न
पमे दर रहन हण सममाव रना र्य ' = == ~~ == जर् हन्त
रै यहो षान का सत्वा नाम তালি জল লতা ওলি লী লল্লার্ট হল
मक्ता} } पर শোভা सा हृष्ट শী
User Reviews
No Reviews | Add Yours...