आनन्द प्रवचन (छठा भाग ) | Anand Pravchan (vol-6)

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Anand Pravchan (vol-6) by कुन्दन ऋषि - Kundan Rishi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कही प्यारे पछी तरशो ? ७ उपयोग नही करते, यानी इनके द्वारा सत्कार्य करके पुन. पुण्य-रूपी पूँजी इकट्ठी नहीं करते तो फिर कव यह्‌ कायं करोगे ? “यह्‌ मत मूलो किं इस जन्म के साथ जो ये समस्त अनुकूल, उत्तम और आत्म- हिते मे सहयोगी वनने वाले साधन मिले हैं, इन्हु प्राप्त करे मे तुम पूवेकृत समस्त पुण्य खच कर चुके हो मौर मव पुन उसका सचय किये विना मनुप्य जन्म मिलना असमव है । अत इस शरीर के द्वारा सेवा, परोपकार, त्याग, तप एव दानादि सत्कायं कर लो और इस जन्म में ही ईश्वर की भक्ति, चितन, मनन एवं ध्यान आदि के द्वारा अपनी आत्मा के स्वरूप को पहचाच लो । अन्यथा आयु समाप्त हो जायेगी ओर तुम्हारे हाथ कुछ भी नहीं आयेगा 1” सत दीन दरवेश ने भी एक स्थान पर मनुष्य को उद्बोधन देते हुए आत्म- हितकारी चेतावनी दी है- चन्दा कर ले वन्दगी, पाया नर तन सार, जो अव गाफिल रहं गया, मायु वै सखमार 1 आयु वहै क्रखमार, त्य नहि नेक बनायो, पाजी वेईमान कौन विधि जग मे आयो 11 कहत दीन दरवेश फेंस्यो माया के फन्दा, पाया नर तन सार बन्दगी फर ले ভ্চ্হা। अपनी कुन्डलिया मे दरवेश कहते हुँ--“अरे वन्दे ! तूने नर-तन पाया है तो खुदा की वन्दगी भी तो कर । अगर अभी भी गाफिल ही रह गया तो यह आयु पानी के प्रवाहं कै समान वहती चली जाएगी ! अफसोस कौ वातत है कि इस अमूल्य जीवन को पाकर मी तूने कोई नेक कृत्य नही किया ओर माया के फन्दे मे पडा हमा वेर्दमानी ओर अनैतिकता से पाप-कर्मों को इकट्ठा करता रह गया) मँ अमीमी तुक्षे यही कहता हूँ कि तू सम्हल और नर-तन का सार निकाल ले 1 गुजराती काव्य में भी आगे दिया गया है- भलये नहीं आपता नाणूं, तरवानू भाखरू तापू, छताये तु नयी तरतो, फहो कक्‍्यारे पछी तरशों ? कवि का कहना है अ र्गर पार करने के लिए तू ब्रत-नियम ग्रहण नही करता, त्याग-तपस्या नही मौर चितन, मनन, ध्यान, स्वाघ्याय त्या ईश-मक्ति आदि भी नही कर सकता तो अत्तिम उपाय दान को तो कम से कम काम में ले। तेरी आवश्यकता से बहुत अधिक घन तुझें मिला हुआ है पर उसे देने में भी इतनी सहीर्णता क्यों ? दान के द्वारा परोपकार करके भी तू गवनसमृद्र को काफी मारा में तर कर पार कर सकता है पर वह भी तुप्त से नहीं होता तो फिर बता क्ते गौर फव त्रु तिरेगा ।




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