सुकवि समीक्षा | Sukavi-samishha
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
290
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)महाव्मा कबीर ११
शान का गंद् कर सुरतिंका दड कर, खेर चौगान मैदान मा्रे।
जगत का भरमना छोड दे बालके, जायजा मेख भगवन्त पष्ठी ॥
भेख भगवन्त की सेस महिमा करे, सेस केसीक्ष पर चरन डारे |
फामद्लू जीति फे कवछदछ सोबि के, ब्रह्म को बेधि के क्रोध मारे ॥
पदम आसन करे पवन परित करै, गगन के महर पर मदन जारे |
कहत कब्बीर कोई सन्त जन जौहरी, करम की रेख पर मेख मारे॥
लेकिन साथ ही इनका निगुण ब्रह्म योग के इेश्वर से मिलन
है। इन सब के अतिरिक्त इन्होने मुखलमानी विश्वासों का भी बिना
खडन किए उल्लेख किया है। निम्न पद्म मे मुरिलम विश्वाप्त से
संबंध रखने बले स्थानो के साथ साथ हिन्दू सकेतः को भी
सम्मिलित कर विया है--
तासु के बदन की कौन भहिमा, कहीं भासती अति नूर छाई ।
सुन्न के महक मे बिमल बेठक, जहाँ सहज स्थान है गेब केरा ।!
छोडि नासूत मरूकूत जबरूत हो जोर छाहूत हाहूत बाजी |
जाथ जाहूत में खुदा खाबिनद् जहँ, वही मक्कान साकेत साजी ॥
भक्ति मार्ग में विचरण करते हुए, कब्रीरजी परमाल्म-पक्ष में
शाम! को ओर भोतिक जगत् में शुरु को ही सब कुछ मानते हैं।
'सतनाम! ओर (सतगुरु, यही दो, इनकी मक्ति-रूपी उपासना फे
केन्द्र हैं । परन्तु इनके 'राम” दशरथ के पुत्र रामचन्द्र नही है।
वे, झकार' शब्द फे, जिसको इन्होंने 'रकारए! कहकर भी अभिदित
किया है, प्रतीक हैं। ये रासः ननिशण, निराकारः के भी उपर
ह, निरगन, निर्कार के पार परबरह्यहे, राम को नम रकार जानो |
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