प्राचीन भातीय राजनीतिक विचार एवं संस्थाएं | Ancient Indian Political Thought And Institutions

Ancient Indian Political Thought And Institutions by हरीशचन्द्र शर्मा - Harishchandra Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्राचीन मारतीय राजनीति का परिचय फ्र से होता है । प्रथम, अप्राप्य को प्राप्त करना (दण्डनीति: श्रलब्ध लामार्था) ; टूसरे, इस प्रकार प्राप्त की गई की रक्षा करना (लब्ध परिरक्षणी ) , तोसरे, रक्षित का झ्मिवघेत करना (रक्षित-विवर्घनी) तथा चौथे. इस प्रकार से प्रमिवरधित का उपयुक्त व्यक्तियों के वीच वितरण करना ग मनु का भी मत है कि राजा को ये चारों कार्य दण्ड भ्रथवा सेना के माध्यप्म से सम्पन्न करने चाहिए ।* इस प्रकार मनु भी दण्ड नीति को भूमि श्रथवा प्रदेश से सम्बद्ध करते हैं । यदि इस दृष्टि से देखा जाये तो 'अर्थशास्त्र' दण्ड नीति का ही भाग है जिसका सम्बंध उसकी प्रथम दो त्रातों से है-भ्र्थात्‌ श्रप्राप्य को प्राप्त करने अर प्राप्त की रक्षा करने से है । कुछ विचारक 'श्रथ शब्द का. सम्बंध मानव जीवन के लक्ष्यों श्र्थात न्रिवर्गे (घर्म, श्रर्थ ग्रौर काम) में से द्वितीय से लगाते हैं । इसके समर्थन में प्रमाण प्रस्तुत करने हुए वात्स्वायन के काम सुत्र का उल्लेख किया जाता है जिसके प्रारम्भ में हो यह कहा गया है कि प्रजापति श्रथवा ब्रह्मा ने लोगों की सृष्टि की तथा उन्हें धर्म, ग्र्थ श्र काम की उपलब्धि कराने के हेतु एक लाख श्रध्यायो वाली पुस्तक की रचना की । इस पुस्तक के धर्म से सम्बंधित भाग को मचु ने इससे पृथक किया, इसके श्र्थ सम्बधी माग को बृहस्पति द्वारा श्रलग किया गया तथा काम से सम्बंधित भाग को नन्दिन के अलग किया । यहां एक वात ध्यान में रखने योग्य है ,कि वृहस्पति को हिन्द राजनीति (0४ रण) का संस्थापक माना जाता है तथा वह भ्रर्थशास्त्र नामक एक ग्रन्थ का लेखक मी है । श्रत: यह सिद्ध होता है कि श्रर्थशास्त्र का सम्ब हिन्द त्रिवगं के द्वितीय श्रेश “मर्थ' से होना चाहिए क्योंकि सभी वर्ग के लोगों को घन प्राप्ति का उपाय बताये । किन्तु इसमें संदेह की गुजाइश नहीं है कि कौटिल्य ने अपने ग्रथेशास्त्र में अर्थ का प्रयोग भूमि के लिए अथवा उस प्रदेश के लिए किया है जिसमें कि लोग रहते हैं । कौटिल्य श्रपने ग्रन्थ के प्रारम्भ में तथा उसके भ्रन्त में अरथे शब्द के इसी अ्रये की घोषणा करते हैं 1 अ्रमरकोश में अर्थशास्त्र तथा दण्डनीति को समाना्थेक शब्द माना गया है । शुक्रनीति के श्रनुसार श्रर्थेशास्त्र में केवल सम्पत्ति प्राप्त करने के उपायों की चर्चा मात्र ही नहीं की जाती वरन्‌ उसमें शासन शास्त्र के सिद्धान्तों का भी प्रतिपादन किया जाता है । अर्थशास्त्र और दण्ड नीति-दोनों ही शब्द प्राय. एक ही शास्त्र के लिए प्रयुक्त किये जाते थे । कहा जाता है कि कौटिल्य पहले अ्रपने ग्रन्थ का नाम दण्डनीति रखना चाहते थे । इस बात का श्रामास श्रथे- शास्त्र के प्रथम अध्याय को देखने पर होता है । किन्तु वाद में उन्होंने इसका नाम दण्डनीति न रख कर श्रथेशास्त्र रखने का निरांय क्यों लिया, इसका उल्लेख उन्होंने स्वय ही ग्रन्थ के श्रन्तिम अध्याय में किया है । बाद में हिन्दू राजनीति से सम्बंधित ग्रन्थों को नीति शार का नाम 1. इस सम्बंध में नीति वाक्यामृत का यह कथन भी उल्लेखनीय है-- “अ्लब्ध लाभी लग्ध परिरक्षणं रक्षित विचर्धनम्‌ चेत्यर्थानुवंध: ।” 2. मनुस्मृति के सातवें श्रघ्याय के इलोक €६-१०१ में मी इन चार बातों का उल्लेख किया गया है 1,




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