प्लेटो के रिपब्लिक का विवेचन | Plato Ke Republic Ka Vivechan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5.9 MB
कुल पष्ठ :
294
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रादकूथन छ प्रदगन बह इस तरह करता है दि वे ऐतिहासिव रेग्दा चित्र जे दिलन लगते हैं । पहले वह एव ऐस राज्य का बणन करना हैं जिसके गठन दा एक्साब्र ल्प जीवन थी आवइयव वस्तुआ वा उतादन करना है जौर वाद मे वहू उस एवं भोगपरायण राज्य में वढन यदलने देता है । प्लेटो जानता था कि राज्य की इन दौना पढतियों के लक्षण त्रासीन एवं स के जन जावन मे प्रवट हुए थे और उह उसने आत्मतात दिया था । ग्रय के अप्टम सथा नवम अध्याया मे यह सिलमिला अधिर स्पष्ट है । यहाँ प्रगति वो तवयुक्त व्यवस्था में वह पाप अथवा दुष्कम वे नाना रुपा को सिमित बरना चाहता है । इमीलिए वह एवं के वाद एवं पाँच पाथा तथा राज्या को शुनगर उनवां इस प्रबार वणन वरता है जसे एफ म से दूमर का विवास इति हाम वो सहज प्रक्रिया हो । अपने लेखन का अधित्र सजीव यमाना इस प्रबत्ति का फल होना चाहिये परनु इसमे ्रामक विचार प्रतपते हैं तथा अनावश्यक दोप मढने ने अवसर बनते है । रिपथ्निव में प्लेट का एक विचार तकसंगत व्यवस्था म दूसर बा अनुगमन करता है जिस नाठशीय अबवा विधिश माध्यम से वहं अपने विचारा को सतत प्रस्तुत करने चलता है उससे ग्रथ या तंकयूक्त गठन बुद्ध वा कुद हो जाता है । रिपलिक वी तारिवन्पद्धति परिचर्चा व अनुरूप ही है । जितने तथ्य पिल सवत हैं उन सबका एकत्र करने बाद मे उपस सिद्धात स्थिर करते वी चैप्टा बट नहीं बरता । तथ्य तो ग्रथ मे भरे परे है परतु पहले से अपने मन म स्थिर सिद्धाता वो प्रतिपादित करने के लिए हो वह उन तथ्या का उपयोग घरता है । वह सिद्धात प्रस्तुत करके उमसे निप्पप तक पहुंचने का प्रयास भी नहीं बरता । वह पुरू से मनुष्य थे स्वरूप वो एवं निश्चित धारणा को ध्यक्ते करता है और फिर उसके वल्पित भावी जीदन के चित्र सोचने में लग जाता है । एसा करते समय वह लगातार उन सिद्धाता का लनुमरण करता है जि हूं उसने समझाया ही नही मगर जिनका आश्रय लेकर ही वहू बहुत दूर तक चर्चा बरता रहा । मानवी जीवन-सम्ब थी परिचित मायताओ से वह मनुष्य के स्वरूप का चित्र बनाना शुरू करता है और धीरे धोरे जीवन के अय रहे सहे तत्त्वा को उसमे जोड़ता है । इसी के साथ वह प्रचलित विचारा वो अपनाता और जाँचता परखता चलता है इस प्रक्रिया म वह सत्य को छानवर रखता हैं असत्य का सटक देता है । तक वी प्रेरणा अथवा निगमन मे से दिसी भी पद्धति से उसकी झली को सम्बाधित नहीं किया जा सकता उसकी प्रणाली अथवा
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