1021 गाँधी सहित्य प्रार्थना प्रवचन 1948 | 1021 Gandhi Sahitya Prarthana Parvachan 1948

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रार्थना-प्रवचन ११ जो उनके मेम्बर हे वे तो मुकसे मुहब्बत रखते हे। झ्रगर वे सब मृभे यहा रहने देना नहीं चाहते तो मेरा यहा रहना फिजूल हो जाता है। मे यहा रहना ही नहीं चाहिए लेकिन उनके नेतासे मेरी बात हुई। उन्होने कहा कि हम किसीका क्‌छ बिगाडना नहीं चाहते हमने किसीसे दुश्मनी करनेके लिए सघ नही बनाया है। यह सही है कि हम लोगोने श्रापकी भ्रहिसाकों स्वीकार नहीं किया है फिर भी हम सब काग्रेसकी कैदमे रहने- वाले है । कांग्रेस जबतक अहिसाका हुक्म करेगी हम शातिसे रहेगे। इस तरह उन्होंने बडी मुहब्बतसे मीठी बाते की । इतनेपर भी झ्रगर श्राप मुक्ते रोक देते है तो फिर कलसे श्राप यहा न भ्राए । मे इस तरहकी प्रार्थना करना नहीं चाहता । में और ही किस्मका बना हुग्रा हू। मे हिंदू हू तो मुसलमान भी हू श्रौर सिव्ख तो करीब- करीब हिंदू ही है। मेने ग्रथ साहबको देखा है। उसमे काफी हिस्से ज्यो-के-त्यो हिंदू धमंके हे--उसी धर्मंके जिस धर्मंका मे पालन करने- वाला हू । इसलिए आ्रापसे श्रदबके साथ मेरी विनती है कि एक बच्चेके कहनेपर भी झ्रगर मे प्राथ॑ना रोक देता हू तो श्राप शात रहिए | यदि श्रापको क्रगडा करके ईद्वरका नाम लेन है तो वह नाम तो ईइ्वरका होगा पर काम शैतानका होगा। श्ौर में कभी छशेतानका काम नहीं कर सकता । में ईरवरका ही भक्त हू । भाप इसे बजदिली न समभे । जब आप बडी तादादमे होते और सब कहते कि प्राथना मत करो तो मे जरूर करता । तब में कहता कि प्राप मेरा गला काटिए में प्राथना करता हू पर यहा झ्राप सबके बीचमे दो-पाच आदमी मुक्ते रोकना चाहते हे। श्राप उन्हे दबा ले श्र मुकसे कहे कि प्रार्थना करो तो वह शैतानी होगी । भ्ौर शैतानके साथ मेरी निभती नही । जो खुदाका यानी ईदवरका दुश्मन है वह राक्षस है । उस राक्षसके साथ मेरी बन नहीं सकती । मेरा लड़नेका तरीका तो राम-जैसा है। राम-रावण-युद्ध जब चल रहा था तब विभीषणने रामसे पूछा कि श्राप बिना रंथके हे श्राप कैसे लडेगे ? तब रामने सच्चाई शौयें श्रादि गुणोके झाधारपर कैसे लडाई लडी जाती है यह बताया । राम ईदवरका भक्त था इसलिए बात भी वैसी ही करता था । उसको




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