पप्रीति - कथा | Priti Katha

Priti Katha by नरेन्द्र कोहली - Narendra kohli

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रीति-कथा / 17 प्०पा छपी 00005 का फिर 100 एव प्यह तो नीति की वात है । विनीत ने उत्तर दिया यूनिवसिटी हैड के निकट इसलिए नहीं पहुंच सका क्योंकि वहां तक पहुंचने का रास्ता न योग्यता है न श्रम जो दूसरे रास्ते हैं उन पर चलने की अनुमति न मेरा स्वाभिमान देता है न काम । काम क्या कहता है? इसलिए किसी हैड से चिपकने का समय ही - नहीं बचता । _विंनीत-हुस पड़ा और हैड लोग कहते हैं कि मेज॑ इतनी प्यारी हैं.तो उसी से ले लो रीडर गौर प्रोफेसरशिप । एक सज्जन गाए ०0816 ए1- शि0णा ऐक्षा208 ? पजी । केतकी हिंदी में ही वोली । जी मैं हूं घोक-संतप्त । डा० शोक-संतप्त । उसने अपने दांतों के साथ-साथ मसुड़ों के एक बड़े भाग की प्रदर्शनी कर दी । विनीत के मन में आया कहे डा० के साथ शोक-संतप्त के स्थान पर रोग-संतप्त शब्द ज्यादा अनुकूल वंठेगा। भर साथ ही विनीत ने अनुभव किया कि उसके भीतर विनीत-शत्रु वहुत उल्लसित होकर उसे उकसा रहा है कह दे । मज़ा आ जाएगा विनीत संभल गया । कहीं यह विनीत-दत्रु उसे फंसा ही न दे । कहिए ग्जी मैं कवि हूं। डा० शोक-सतप्त मुस्कराए ही जा रहे थे कनाडी कविता की प्रकृति समझने के लिए नापके साथ धोड़ी देर के लिए बठना चाहता हूं लंच के वाद वंठेंगे । केतकी ने उसकी वात पुरी नहीं होने दी । वह विनीत की ओर घूम गई तो तुम्हारी मेज तुम्हें रीडरद्षिप नहीं दे सकती क्या ? केतकी के स्वर में ईमानदार जिज्ञासा वोल रही थी तुम्हारे लेखन के आधार पर तुम्हें यूनिवर्सिटी में ऊंचे से ऊंचा पद मिल सकता हू ।




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