हिंदी प्रेमगाथाकाव्य संग्रह | Hindi Prem Gatha Kavya Sangrah

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेममार्गी कवि जायसी से क़रीब सौ-सवा सौ वर्ष पहले ही हिंदू और मुसल- मान जनता सास्प्रदायिक विद्वेष को बहुत कुछ किनारे समभौते की... कर एक-दूसरे की संस्कृति उपासना-पद्धति ्ौर वत्ति विदवार-परम्परा ्यादि को सहाचुभूतिपूर्वक सम भरने घ्यौर पारस्परिक झादान-प्रदान की ओोर रुचि करने -_ लगी थी । यद्यपि तत्कालीन मुसलमान शासकों का भाव हिंदू प्रजा के - प्रति उतना सहानुभूतिपूर्ण नहीं था तथापि हिंदू और मुसलमान प्रज्ञा में एक प्रकार का ज्राठ्माव स्थापित हो चला था ौर वह उत्तरोत्तर दृढ़ से दृद़तर होता चला जा रहा था । मुसलमान प्रजा यह समकने लगी थी कि यदि हमें हिंदुस्तान में रहना ही है तो हिंदुआओं के विश्वास संस्कृति तथा साहित्य श्रादि के प्रति छत्तीस होकर रहना झसंभव है । शायद यही कारण था कि तत्कालीन कुछ मुसलमान बविचारक फकीर उौर कवि हिंदुओं के साहित्य श्रौर संस्कृति के अध्ययन की छोर तो झुकके ही पर कुछने हिंदु्मों की तत्कालीन काव्यभाषा में साहित्य निमोण का भी श्रीगणेश किया । इन लोगों ने इस बात को ठीक-ठीक समझा लिया था कि दोनों सम्प्रदायों के लोगों में एक-दूसरे की संस्कृति ौर साहित्य के प्रचार और उनको लोकप्रिय बनाने से बढ़कर झापस में घनिष्ठता घर सौहाद्र स्थापित करने का दूसरा उपाय नहीं हो सकता। इसी विचार से प्रेरित होकर ख़ुसरो कबीर शर जायसी आदि कुछ दूरद्शी कवियों ने इस दिशा की झोर पैर बढ़ाया शर इसमें उन्हें झच्छी सफलता भी मिली । सबसे पहले खुसरो ही इस काये में अग्रसर हुए। खुसरो की कऋषिता का रैक बहुत बड़ा भाग लुप्त हो गया है तो भी जो प्राप्त हे उससे उनकी हिंदुओं के धर्मंत्रंथ संस्कृति तथा साहित्य छादि के प्रति




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