मोपासां की कहानियाँ | 1298 Mopansa Ki Kahaniya

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1298 Mopansa Ki Kahaniya by इलाचन्द्र जोशी - Elachandra Joshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेमोन्माद ७ से आती थी और थाने पर प्रतिदिन एक बार शूके के पास से होकर गुजरती थी। पर वह उसकी ओर एक बार माँड उठाकर भी न देखता इससे उसके मर्म में गहरी चोट पहुँचती थी, सन्देह नहीं; पर इसी कारण उसका प्रेम भी उस दवाफरोदा के लड़के के प्रति दिन पर दिन अधिकाधिक बढ़ता चला जाता था। उसके उस पागल प्रेम की तीव्रता का ठीक-ठीक अन्दाज़ लगाना कठिन है। उसकी मृत्यु के पहले जव में उससे मिला था, थक तो उसने मुझसे कहा था--“डॉक्टर साहब, ससार मे मे केवल एक ही पुरुष को जानती हूँ, दूसरे पुरुष का अस्तित्व ही मेरे लिए कभी नहीं रहा। वह पुरुष कौन है, यह आप जानते ही हैं।” “कुछ समय बाद उसके माता-पिता की मृत्यु हो गई। वह अकेली अपनी जीविका का निर्वाह करती रही। पर अपने साथ उसने दो भयकर आकृतिवाले खुँहवार कुत्ते पहरा देने के लिए रख लिये ताकि कोई दुष्ट प्रकृतिवाला व्यक्ति उसे अकेली देखकर तग करने. का साहस न करे। “एक दिन जब वह गाँव से आई, तो उसने देखा कि शुके एक युवती स्त्री का हाथ पकड़े अपनी दुकान से नीचे उतर रहा है। वह चूके की स्त्री थी। उसने हाल ही में विवाह किया था। इस दृष्य से उसे ऐसा धक्का पहुँचा कि वह उसी दिन सध्या के समय' एक तालाव में कूद पड़ी । एक मछुवे ने उसे कूदते हुए देख लिया था। वह उसे पानी में से निकालकर शुके की फार्मेसी में ले गया। चूके ने स्वय उसकी दवा-दारू की । जब वह होग में आई तो थूके नें उसे हढकी फटकार बताते हुए कहा--“एऐसा पागलपन अब से फिर कभी न किया करना ।” “शुकते का उससे बोलना ही उसे स्वस्थ करने के लिए यथेप्ट था । कि शुके का एक-एक शब्द आनन्द के वाण की तरह उसके मम में अ्रवेशयं ि,




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