सुन्दर ग्रंथावली | Sundar Granthavali
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18.84 MB
कुल पष्ठ :
582
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फतेहपुर की घटनायें हे वे सब श्रा गये शरीर समय ठीक होने पर कथा श्रारम्भ नहीं की तब श्रागत विद्वानों ते वहा कथा झारम्भ करे कथा सुनने वाले सब विद्वान झा गये है सत ने कहा -- श्रोता नही श्राया । फिर सुन्दरदासजी श्राये तब कथा शझ्रारथ करदी किन्तु भ्रस्थ विद्वानों ने कथा समाप्ति पर कह्ा जिस विद्यार्थी के श्राने पर झापने कथा श्रारम्भ की वह तो भ्रभी हमारे पास पढता है उसे ही श्रापने श्रोता समझा है श्ौर जो बटे-बढ़ें पति थ्रा गये थे श्रोता नही थे क्या ? वक्ता ने कह्ा-हा वह सच्चा श्रोता है । पड़ित गण -इसमें क्या प्रमाण । वक्ता ने कहां कथा झारेभ से श्राज तक की श्राप सब एक गत मे ही पद्य वद्ध कर के लावें उस के द्वारा निणंय हो जायगा कि कौन श्रेष्ठ श्रोता है। पड़ती ने कह्ा--ठीक है फिर सुन्दरदासजी को वक्ता ने कहा । इस विवाद को भाप ही मिटायेंगे । कथा श्रारभ से श्राज तक की कथा को सक्षिप्त रूप पयवद्ध करके लाभो । सुन्दरदासजी ने कहा जो श्राज्ञा श्रापकी कृपा से प्रयत्न करू गा । टूसरे दिन सब पढड़ित भाषा पथ्यो में सुनी कथा को बनाकर लाये । सचकी मिलाकर वक्ता ने कहा निष्पक्ष हो कहो किस की ठीक है तब सबने कहा ठीक तो विद्यार्थी की दी ज्ञात होती है । वही रचना सुन्दरदास जी ने रखी थी श्रौर फिर ज्ञान समुद्र की रचना के समय वह रचना तथा प्रत्य भी प्रसंग के पद्य मिला कर ज्ञान समुद ग्रथ रचा था श्रौर ज्ञान समुद्र ही प्रन्थो के श्रारम्भ में रखा गया है इसमें सूचित है कि उक्त काशी की रचना ज्ञान समुद्र मे मिलाकर श्रौर भी प्रसंग की रचना मिला कर पहले ज्ञान समुद्र रचा था । सर्वप्रथम ज्ञान समुद्र हो सुन्दरदासजी के ग्र थो की गणना में हैं इससे प्रथम नम्वर प्राप्त है । कहा भी है -सच्चे श्रोता को रहै सब प्रसंग भल याद । -... ज्ञान समुद्र बनाय के सुन्दर हरा घिवाद ॥। फतेहपुर की घटनायें सुन्दर्दासजी लगभग २० वर्ष श्रध्ययन कर के काशी से लौटे श्रौर भ्रमण करते हुए शेखावाटी प्रदेश के फतेहपुर नगर मे विस. १६८२ कातिक शुक्ला १४ को नवाव अलफ खा के समय श्राये थे श्रौर नगर के वाहर किसी शुन्य स्थान में रहने लगे थे । ग्रीष्म ऋतु थी श्राप ग्राम में भिक्षा करने जाते थे श्रौर अपनी क्षधा निवारण हो सके उतना श्रन्न लेकर उसी स्थान मे लौट ध्राते थे। भिक्षा करके निरतर ब्रह्म भजन ही करते थे । गुरुदेव दादूजी महाराज की वाणी के श्रनुसार अपना साधन तथा व्यवहार करते थे 1 एक दिन नगर से भिक्षा लेकर सुन्दरदासजी लौट रहे थे । मार्ग में दोनों शोर खेती की रक्षा के लिये मिट्टी की दीवालें थी । सामने से वहा का नवाब शिकार करके श्रपनी सैनिक टुकष्टी के साथ लौट रहा था । सुन्दरदामजी उनसे ि द ह
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