कर्म योग | Karm - Yog
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4.3 MB
कुल पष्ठ :
146
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)फर्मयोग १६
उससे शक्ति हुममें लौटकर नहीं रा सकती, परन्तु यदि स्वेच्छा-
निरोध किया जाय तो शक्ति बढ़ेगी । इस प्रकार के निरोध से
वह मन:शक्ति उत्पन्न होगी, वह चरित्र बनेगा जिससे एक
इंसा इसा घर एक चुद्ध बुद्ध दोता है । मूढ़थी यह रहस्य
नहीं जानते ; फिर भो वे मनुष्य-जाति पर अपना प्रभुत्व
स्यापित करना चाहते हें । मूर्ख यह नहीं जानता है कि वह भी
यदि के करे ौर प्रतीक्षा करे, तो समस्त संसार का स्वामी हो
सकता है । कुछ दिन पेय रखिये, स्वामीत्व के विचार का
निरोध कीजिये ; जच बह विचार पूर्णत: चला जायगा तब
ब्मापकों इच्छा-शक्ति से ब्रह्मारड शासित होगा । मनुष्य चार
पेसे के पीछे अंधा बना घूमता है और उन छ्लुद्र चार पैसों के लिये
घ्पने भाई मनुप्य को धोखा देने में तनिक थी 'झाया-पीछां नहीं
करता ! परंतु यदि वह थेये घारण करे, तो वह ऐसा चरित्र बना
सकता हैं कि इच्छा करने पर करोड़ों अपने पास बुला सके ।
परंतु इम सच ऐसे दी सूर्ख हैं । हममें से झधिकांश की कुछ दिनों
के दृष्टि नहीं पहुँचती जैसे कि कुछ पशु दो-चार कदम के
ब्यागें नहीं देख सकते । एक छोटा-सा च्त्त--यही हमारा संसार
है | उसकी क्षितिल पारकर देखने का हममें पेय नहीं और हम
पापी श्रौर अनाचारी हो जाते हैं। यही इसारी शक्तिद्दीनता,
निरवलता है |
छोटे-से-छोटे कामों से भी नाक-भीं न सिकोड़ना चाहिये ।
मनुष्य अपने स्वार्थ के लिये, घन और यश के ही लिये काम करे,
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