कहानी जवाहरलाल की | Kahani Javaharalal Ki

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Kahani Javaharalal Ki by देसराज गोयल - Desaraj Goyal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फैलने लगा । किसानों के बीच जाकर जवाहरलाल ने जाना कि गांधी जी इस भारत को कितना समझते हैं । वह उन गांवों में तीन दिन तक घूमे । जून का महीना था । गरमी पूरे जोर पर थी । सिर पर तौलिया बांधकर घूमते रहे । बिना धूप लू गरमी की चिंता किए । उनमें एक नया जीवन आ गया | उससे पहले जवाहरलाल को भाषण करने में झिझक होती थी | खासकर हिंदुस्तानी में बोलने से । गांवों में घूमते हुए जवाहरलाल बेखटके उनकी भाषा में बोलने लगे । किसान आंदोलन का असर भी हुआ । एक्ट में सुधार हुए । यह सुधार ऐसे तो नहीं थे जिनपर पूरा संतोष किया जाए । तो भी कुछ राहत तो मिली । किसानों का भय दूर हुआ । अपने आप पर भरोसा बढ़ा । पुलिस और जमींदार का भय कम हुआ । किसी किसान को खेत से बेदखल किया ज़ाता तो दूसरा उस खेत को जोतने के लिए आगे न आता । जमींदारों के गुमाश्तों और पुलिस के दमन में कमी आई । कहीं जुल्म होता तो शोर मचता । जांच करने की मांग की जाती । वातावरण बदलने लगा | इस यात्रा के बाद जवाहरलाल ने गांवों का साथ नहीं छोड़ा । गांव में जाकर किसानों का साथ देना कांग्रेस वालों के काम का हिस्सा बन गया । असहयोग आंदोलन और किसान आंदोलन एक हो गए । इसका फल बहुत अच्छा हुआ । अहिंसा आपस के संबंधों का हिस्सा बनने लगी । गांधी का संदेश देश के कोने कोने में पहुंच रहा था । चारों ओर गांधी जी की जय और हिंदू-मुसलमान की जय के नारे लग रहे थे । लोग आजादी के दीवाने हो रहे थे । 1921 के अंतिम दिनों में यह लहर और भी जोर पकड़ गई। . बरतानिया के युवराज भारत आ रहे थे । कांग्रेस ने उनका बायकाट करने 15




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