कांग्रेस के पिता | Congress Ke Pita

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Congress Ke Pita by अज्ञात - Unknown

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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फॉ्रेसके पिता । जनुसार जिठेके अफसरोको कुछ करनेकी शक्ति नहीं रहती । चिट्ठी, प्री, रिपोटे ओर नककषोंका उन्हें इतना काम रहता है कि उन्हें दुफ्तरसें छुट्टी ही नहीं । जब साहब काम सीसते थे तत्र यह चात नहीं थी । उन्होंने सभसे छोटी जगहसे काम करना शुरू किया और वे ऊँचे ऊँचे बढ़ते गये । उन्होंने स्वयं अपने हर एक अपन कर्मचारीके कामकों किया था और ऐतों और जंगलॉमिं घूम कर तथा सर्व प्रकारके ठोगोंसि , मिठ कर अनुभव प्राप्त किया या । दूम साहब यह चात॑ भी नहीं थी कि उनका पुस्तकीय ज्ञान कम था । सच पूछो तो झूम साहवकी जल्दी जल्दी बढ़ती और तरकीका कारण ही यह था कि ये 'परीक्षाओंगं सर्वोत्तम रहते थे 1 शदरकां समय । अब सन्‌ १८५७ ई० के गद्रकी म्थकर घटनाओंका कुछ उलठेख किया जाता है । झूम साहबके मित्र करमठ सी. एच. टी. मारशल (0. प्र. 1, ) ने जो “ इंडिया * नामक प्रकों इटावेकी गद्रके समयकी अवस्था ठिसी थी, उससे विदित होता है कि किस प्रकार हम साहबने उस पिश्वांतसे, जो उन्होंने ठोगोंके दिलोंमें अपनी त्तरफले पैदा कर रक्‍्सा था, स्थानीय ंग्रेजॉंकी जानें बचाई और गदर मचानेवाठोको एक लड्ाईमें हरा कर तथा उनसे ६ तोंपें छीन कर संतरे स्थापित की । करनल मारशठने जो लेख इंडिया पत्रमें प्रकाशित किया था उसका आशय इस मकार है । कर “ एलन छूम सच र८४९ ई० से चंगाल सिचिल-सार्विततमें मरती हुए । डस समय उनकी अवस्था ९० सर्पकी थी । उन्हें हिन्दुस्तानं आये मी ८ वर्ष भी न बीति थे कि १८५७ ईं० में गदर मच गया और उनको अपनी सेनिक वीरता और शासमकी योग्यताके प्रगठ करनेका मीका पिठा । उनकी जल्दी बढवारी होती गई । उनकी फेवर रद




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