जातक - कथा | Jatak Katha

Jatak Katha by

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बज. यो सूप झन दया ऊन देह 'जातक-कथा ११८६ ् चजारा अतीत काल सें काशी देश से वाराणसी ( बनारस ) नाम का एफ नगर था । उसमें राजा घद्मदत्त राज्य फरता था ) चोधिसत्य उस समय गये चंजारे के घर पंढा हुए थे । प्राप्त होने पर उन्होंने ध्यापार करना शुरू किया । बंद शास-पास दी प्रान्तो सें, कभी इस प्रान्त सें कभी उस ध्रानन में घसदर परे थे । इस प्रकार साल बेचते उन्हे कड़े साल बीत शरद । पुफ यार एनदोने सोचा--फ्यों न दूर प्रठेगा चलकर रूव सामान चेचा जाय+ नग्पनतरण दे माल खरीदे जायं । इस बहाने देश-झमण भी होगा । दूर-ढेश व्यापार के लिए जाने का विचारकर यवोधिसन्य मे नाना के बहुत से सामान एकत्र किये । पांच सी गारियों पर उन इस प्रकार एक महा सार्थवाह ( फाफिला ) फे सार यामी देख ये पोधि- स्व ने यात्रा गुरू की । उसी समय घनारस से दो एफ धार पंजारे फे पुन मे पाय न्य गाडियों पर सामान लादकर चलने फी सेयारी की । योधिस ये ने सोया+ 'घ्गर यद भी मेरे साथ जायगा तो एफ ही रास्ते से एक एयार गाटियों के जाने के लिए रास्ता काफी न होगा। पयाइमियों फे लिए सूप बलों के लिए घास-चारा मिलना कठिन हो लायगा । टुसलिए या सो. उसे गे जाना चाहिए या मुख । * फेमस कि कं भी १. जातफ । ५.१,५ शत न | न दा




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