अप्सरा | Apsara

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Apsara by दुलारेलाल - Dularelal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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নেহা १९ स्राहब की जेब्र में रख दी। फिर युवती से पूछा-- “आपको कहाँ जाना है ?” “मेरी माटर रास्ते पर खड़ा है । उत पर मेरा डाइवर झोर बूढ़ा अदली बेंठ। द्वोगा । में दवाखोरा के लिये आई थी। आपने मेती रक्षा का। में सदेव--धदेव आपकी कृतज्नञ रहूँगी ।” युवक ने सिर रुका लिया। “आपका शुभ नाम ?” युवती ने पूछा । “नाम बतलाना श्ननावश्यक सममन हरं । श्राप जत्द यहाँ से चली जायें।” युवक को कृतज्ञता की सजल दृष्टि से देखती हुई युवती वल दो | रुककर कुछ कहना चाहा, पर कह न सकी । युवती फ्रोल्ड के फाटक की ओर चली, युवक हाईकोट की तरक चला गया | कुछ दूर जाने के बाद्‌ युवती फिर लोटी। युवक नज़र से बाहर हो गया था। वहीं गई, ओर साहब की जेब से चिट्टी निकालकर चुयचाप चली आई | (२) कनक धीरे-धोरे सखोलहवें वर्ष के पहले चरण में आ पड़ी । अपार, अलोकिक सोंदर्य, ए्रांत में, कभी-कभी अपनी मनोहर रागिनी सुना जाता ; वह कान लगा उसके झमृतरवर को सुनती, पान किया करती । अज्ञात एक झपूर्ष आनंद का प्रवाह-अंगों को आपाद-मस्तक नहला




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