जैन विद्या का सांस्कृतिक अवदान | Jain Vidha Ka Sanskrtik Avdan

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Jain Vidha Ka Sanskrtik Avdan by प्रेम सुमन जैन - Prem Suman Jainरामचंद्र द्विवेदी - Ramchandra Dvivedi

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प्रेम सुमन जैन - Prem Suman Jain

Professor  (Dr.)  Prem   Suman   Jain  D. Lit. ,  UDAIPUR

            Born at Sinundi in Jabalpur Distt. in Madhya Pradesh on 1st August, 1942. Professor (Dr.) Prem Suman Jain is an eminent Prakrit Scholar and Jainologist by his commendable literary and research contribution. Dr. Jain retired as the Professor and Head of the Department of Jainology and Prakrit from M.L. Sukhadia University, Udaipur after over 30 years of service. He was also Dean, faculty of Arts and Dean Student Welfare in the University.

Dr. Jain has  also served as Director and holding the Professor and H.O.D. Post in the D

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रामचंद्र द्विवेदी - Ramchandra Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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राजस्थान ओर जेन साहित्य मुनि जिनविजय प्रिय विद्वद्दर आचार्य महोदय डा० श्री रामचन्द्रजी द्विवेदी सेव में सादर निवेदत कि जापका एक कृपा-पत्र कुछ समय पहले मूं मिला । यह्‌ जानकर बहुत हषं हुआ कि आपकी अध्यक्षता में उदयपुर युनिवर्सिटी के तत्वावधान में, जैन संस्कृति से संबद्ध एक सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। जिस पुण्यभूमि पर उदयपुर विश्वविद्यालय अवस्थित है वह भूमि युगातीत काल से भारत की समुच्चय संस्कृति का एक महत्त्व का केंद्र रही है। महाकवि चत्रवर्ती सम्राट श्री हर ने आधारभेद पाद का प्रातःस्मरणीय उल्लेख किया है । जैन और बौद्ध दोनों संप्रदाय वाले इस स्तुति का पाठ किया करते हैं--पुरातत्त्ववेत्ताओं ने इस भूमि के विषय में बहुत कुछ संशोधनात्मक कायं कियेहै। जन संप्रदाय की दृष्टि से भी विचारा जाय तो इस भूमि के आधिपत्य वाले प्रदेश में, जन संस्कृति और जन साहित्य का प्रभाव विशेष स्थान रखता है । जिस समय गुहिलोत वंश के प्रतिष्ठापक वापा रावलने इस भूमि को अपना कर्मक्षेत्र बनाया उससे भी बहुत पहले जैन धमं-गुरुओं ने इस प्रदेश की जनता को दान, दया, सदाचार विषय के सदुपदेशों से यथेष्ट संस्कार-संपन्‍न करने का सतत प्रयत्न किया है । जन इतिहास के अनेक प्रकरण इस भूमि की महत्ता प्रकट करते हैं। जैन साहित्यकारों ने इस भूमि के अनेक गांवों और नगरों में निवास कर छोटी-बड़ी हज़ारों साहित्यिक कृतियों का प्रणयन कर समुच्चय भारती भंडार को सुसमृद्ध किया है । आप बविद्वज्जनों ने जैन संस्कृति विषयक विद्रद्धिचार गोष्ठी का जो सुन्दर आयोजन किया है, एतदर्थे मेरा अनेकानेक हादिक अभिनन्दन है । मेरा स्वास्थ्य अब अत्यधिक क्षीण हो रहा है इसलिए मैं आप द्वारा आयोजित राजस्थान और जैन साहित्य : १




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