रविन्द्र साहित्य भाग १२ | Ravindra Sahitya Bhaag 12
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
59 MB
कुल पष्ठ :
142
श्रेणी :
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No Information available about धन्यकुमार जैन 'सुधेश '-Dhanyakumar Jain 'Sudhesh'
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)हैः के समान ।' नये प्रसिडेन्टसे हम चाहते ই कंडी '
৮7, না लाइनकी और खड़ी लाइनकी रचना, तीरके समान, बरछीके फलके संभान |
कटिके समान,-फूल जैसी नहीं, बिजलीको रेखा जसी, न्युरैल्जियाके दद `
जैसी, न्कीली, नकीले गॉथिक गिर्जेके ढंगकी, मन्दिरके मंडपके ढंगकी' नहीं,
২ रथंट-बिल्डिगके ढाँचेकी हो तो भी कोई नकस [ল
| । “““अबसे फेंक दो मन मन भरमानेवाली वाहियात छन्दबद्धताकों, .
उससे छीन लेना होगा मनको, जैसे रावण छीन ले गया था सीताको ।
मन अगर रोते-रोते और आपत्ति करते-करते जाय तो भी उसे जाना ही `
होगा । अतिवृद्ध जयाथ की मत्य
। होगी । उसके बाद कुछ দে ্ बन 1 बीतते ही किष्किन्ध्या जाग : तै ठगी, और
कोई हनुमान सहसा कूदकर लंकामें आग लगाके मनको पहकेकौ जगह `
.._ लौटा लानेकी व्यवस्था करेगा । तवं फिर होगा ठेनिसनके साथ हमारा `
` पुनमिलन, बायरनके गलेसे लगकर आँसू बहायेंगे हम, और डिकेन्ससे ध
` करेगे कि भाफ करो, मोहसे आरोग्य होनेके लिए ही हमने तुम्हें गालियाँ
दी थीं] “मुगल बांदशाहोंके समयसे छेकर आज तक दशके तमाम मुग्ध ¦
राजगीर मिलकर अगर भारत-भरमे जर्हा तहां सिफं गुम्बनदार पत्थरके
बुद्बुद हौ बनाते जाते, तो भद-वंशका प्रत्येक आदमी जिस दिन बीस `
. पालकी उमर पार करता उसी दिन वानप्रस्थ लेनेमे देर न करता `
ताजमहल्को अच्छा-र्गानेकी सातिर ही ताज-महलका नदा चृडा देना
०20 जररीहै। 77 पल
.... | यहाँपर इतना कह रखना जरूरी है कि शब्दोंके स्रोत या वेगको টা
8 ৃ सम्हार न सकेनके कारण समाकं रिपोटरका सर चकरा गया था; ओर ६
उसने जो शरद किसी थी वह् अभितकी वक्ततासे भी कहीं ज्यादा जवोध्य `
हौगर्ईदथी। उसी्ेसे जो भी कु दुकडोका उदार किया जा सज उन्हे |
. हमने ऊपर सजाके रख दिया है। ]
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