रविन्द्र साहित्य भाग १२ | Ravindra Sahitya Bhaag 12

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हैः के समान ।' नये प्रसिडेन्टसे हम चाहते ই कंडी ' ৮7, না लाइनकी और खड़ी लाइनकी रचना, तीरके समान, बरछीके फलके संभान | कटिके समान,-फूल जैसी नहीं, बिजलीको रेखा जसी, न्युरैल्जियाके दद ` जैसी, न्‌कीली, नकीले गॉथिक गिर्जेके ढंगकी, मन्दिरके मंडपके ढंगकी' नहीं, ২ रथंट-बिल्डिगके ढाँचेकी हो तो भी कोई नकस [ল | । “““अबसे फेंक दो मन मन भरमानेवाली वाहियात छन्दबद्धताकों, . उससे छीन लेना होगा मनको, जैसे रावण छीन ले गया था सीताको । मन अगर रोते-रोते और आपत्ति करते-करते जाय तो भी उसे जाना ही ` होगा । अतिवृद्ध जयाथ की मत्य । होगी । उसके बाद कुछ দে ্‌ बन 1 बीतते ही किष्किन्ध्या जाग : तै ठगी, और कोई हनुमान सहसा कूदकर लंकामें आग लगाके मनको पहकेकौ जगह ` .._ लौटा लानेकी व्यवस्था करेगा । तवं फिर होगा ठेनिसनके साथ हमारा ` ` पुनमिलन, बायरनके गलेसे लगकर आँसू बहायेंगे हम, और डिकेन्ससे ध ` करेगे कि भाफ करो, मोहसे आरोग्य होनेके लिए ही हमने तुम्हें गालियाँ दी थीं] “मुगल बांदशाहोंके समयसे छेकर आज तक दशके तमाम मुग्ध ¦ राजगीर मिलकर अगर भारत-भरमे जर्हा तहां सिफं गुम्बनदार पत्थरके बुद्बुद हौ बनाते जाते, तो भद-वंशका प्रत्येक आदमी जिस दिन बीस ` . पालकी उमर पार करता उसी दिन वानप्रस्थ लेनेमे देर न करता ` ताजमहल्को अच्छा-र्गानेकी सातिर ही ताज-महलका नदा चृडा देना ०20 जररीहै। 77 पल .... | यहाँपर इतना कह रखना जरूरी है कि शब्दोंके स्रोत या वेगको টা 8 ৃ सम्हार न सकेनके कारण समाकं रिपोटरका सर चकरा गया था; ओर ६ उसने जो शरद किसी थी वह्‌ अभितकी वक्ततासे भी कहीं ज्यादा जवोध्य ` हौगर्ईदथी। उसी्ेसे जो भी कु दुकडोका उदार किया जा सज उन्हे | . हमने ऊपर सजाके रख दिया है। ]




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