आधुनिक कवि | Aadhunik Kabi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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बन श्‌ छू... हनन में छिपा हुम्रा और श्रपनी ऊध्वंगामी वृत्तियो से निमित विर्वबन्धुता मानवधर्स ग्रादि के ऊँचे श्रादर्शों मे अनुप्राणित मिलेगा। यदि परम्परागत धार्म्मिक रूढ़ियों को हम श्रध्यात्म की सज्ञा देते हे तो उस रूप मे काव्य मे उसका महत्व नहीं रहता । इस कथन में भ्रध्यात्म को बलात्‌ लोकसग्रह्ी रूप देने का था उसकी ऐकाल्तिक अनुभूति अस्वीकार करने का कोई श्राग्रह नही है। श्रवश्य ही वह श्रपने ऐकान्तिक रूप मे भी सफल है परन्तु इस भ्ररूपरूप की श्रभिव्यक्ति लौकिक रूपको में ही तो सम्भव हो सकेगी । जायसी की परोक्षानुभूति चाहे जितनी ऐकान्तिक रही हो परन्तु उनकी मिलन- विरह की मधुर और मर्मस्पशिनी श्रभिव्यब्जना क्या किसी लोकोत्तर लोक से रूपक लाई थी ? हम चाहे झाध्यात्मिक सकेतो से झपरिचित हो परन्तु उनकी लौकिक कलारूप सप्राणता से हमारा पूर्ण परिचय है। कबीर की ऐकान्तिक रहस्यानुभूति के सम्बन्ध में भी यही सत्य है । वास्तव में लोक के विविध रूपो की एकता पर स्थित भ्रनुभूतियाँ लोक-बिरो- घिनी नहीं होती परन्तु ऐकान्तिक रूप के कारण श्रपनी व्यापकता के लिए वे व्यक्ति की कलात्मक सवेदनीयता पर श्रधिक श्राश्रित है। यदि यह भ्रनुभूतियाँ हमारे ज्ञानक्षेत्र मे कुछ दार्शनिक सिद्धान्तो के रूप में परिवर्तित मे हो जावें झध्यात्म की सूक्ष्म से स्थूल होती चलनेवाली पृष्ठभूमि पर धारणाझओ की रूढि मात्र न बन जावे तो भावपक्ष मे प्रस्फुटित होकर जीवन श्रौर काव्य दोनो को एक परिष्कृत और अभिनव रूप देती है । हमारी भ्रस्त शक्ति भी एक रहस्य से पूर्ण है श्रौर बाह्मजगत का विकास-क्रम भी भ्रत जीवन में ऐसे भ्रनेक क्षण श्राते रहते है जिनमें हम इस रहस्य के प्रति जागरूक हो जाते हे । इस रहस्य का श्राभास या श्रनुभूति मनुष्य के लिए स्वाभाविक रही हे अन्यथा हम सभी देशो के समुद्ध काव्य-साहित्य में किसी न किसी रूप में इस रहस्यभावना का परिचय न पाते । न वही काव्य हेय है जो श्रपनी साकारता के लिए केवल स्थूल श्नौर व्यक्त जगत पर श्राश्रित है श्रौर न वहीं जो श्रपनी सप्राणता के लिए रहस्यानुभूति पर। वास्तव मे दोनो ही मनुष्य के मानसिक जगत की मू्े और बाह्य जगत की श्रमूत्त॑ भावना की कलात्मक समष्टि हैं। जब कोई कविता काव्यकला की स्वेमान्य कसौटी पर नहीं कसी जा सकती तब उसका कारण विषयविशेष न होकर कवि की श्रसमर्थता ही रहती है । पिचले छायापथ को पार कर हमारी कविता झाज जिस नवीनता की श्रोर जा




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