विश्व साहित्य | Vishv Sahitya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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साहित्य का सूल १९ कोई नियम नदी ईद निकालती ! कला जीवन की प्रकाशिका कटी गई है.। अतएव नीवन-वेचिन्रय के कारण) कला का वेचितरय सदव रहेगा | वैचित्य के अभाव से कला का दास होता है। सलुप्य- समाज जित्तना ही जटिल दोगा, कला मी उतनी ही जटिल होगी ; और जव मनुष्य-समाज खरलता कौ शोर भअश्सर होगा, तब कला में भो सरलता आने लगेगी । सभ्यता के घ्रादि-काल्‌. म मानव-जीवन वहत सरल होता हैं । श्रतएवं _ सस्कालीन् साहित्य और कला में सरलता रहती है। तव न तो शब्दों का अडबर रदता दै, योर न ध्र्लकारी का चमत्कार । उस समय कला का छषेत्र सी परिसित रहता है । उससे रूप रहेगा, कितु रूप-वैचित्रय नहीं । ज्पों-ज्यों सभ्यता की वृद्धि होती है, त्यों-त्यों मनुप्य-जीवन जटिल होता जाता है, साथ हो कल्ता भी जटिल होती नाती है । जीवन कौ विशालता पर कला का लींदर्स अवलंबित ই। লিজ जाति का जीवन जितना ही घिशाल होगा, उसकी कला भी उत्तनी ही अधिक उन्नत होगी, भौर उसका आदुर्श भी उतना ही विशाल होगा । एक उदाहरण से हम इस बात को स्पष्ट करदा चाहते हैं । भाचीन काल की श्रसभ्य जातियों की बनाई हुईं चित्राचली मिलती ह! उसमे भौर सब्प ग्रीक-जाति की शिल्प-कला में क्या भेद है ? अीक-जाति के समान उन असमभ्प्र जातियों को भी जीवन के विषय सें विस्मय होता था। रूप के पर्यवेच्चण में उन्हें भी आनंद होता था; ओर उन भावों को वाह्म रूप देने के लिये थे भी चंचल थीं । उनके चित्रों में ये बातें हैं।परंठु जीवन की छुद्धता में उन्होंने सिफ़े रूप देखा, रूप-वैचित्रम नहीं | रूप-वैचित्प भी यदि उन्होंने देखा, तो उसमें सुपमा और सुसंगति ८ त 9पा०णछ ) नहीं देख स्कीं 1 उसको मीक लोगों ने देखा । जरीक लोगों की कला में अधिक सोदयं दै; क्योकि उनके जीवन का क्षेत्र सी अधिक विशाल था।




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