आधुनिक हिंदी साहित्य : एक दृष्टि | Aadhunik Hindi Sahitya Ek Drshti
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
170
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)कला और समाज ६
गतिमूलक समाज की ही सजीव उपज है | ग्रस्त, जेग् जोत श्रथवा दी
एस० इलियट-की रचनाओं मे एक फीक्रापन ই, নন লগা यीता वैमव ह |
यह झवसाद सभी आधुनिक वूजु आ कला का गुण है । इस कला के हास-
गुण पर जॉन स्ट्रेची लिखते हैं:--..
“ इन लेखकों को हातोन्मुख कहने से हमारा तात्पर्य यह है कि ऐसी
रचनाएँ, चाहे मले या बुरे के लिए, किसी संस्कृति के अ्रन्तिम छ्षणों में ही
हो सकती हैं | इस प्रकार की रचना सदैव ही किसी युग के श्राख्तिरिी चरण
में होती है | 'वइजेन्टियन! शब्द, जो इसके लिए गढ़ा गया है, यही व्यक्त
करता है । 'हातोन्मुखः विशेषण से हमारा यही तालये है |”
उनकी रचनाओं से स्वास्थ्य और जीवन का कोई ग्रुण अवश्य ही निकल
चुका है । उनकी कला की रंगीनी क्षय-पीड़ित मुख के आलोक की तरद
है | इन रचनाओं में एक ऐसा नेराश्य और पराजय का भाव है, जिंतकी
पुराने लेखकों की दुःखान्त शालीनता से कोई समता, नहीं ।
अधिकतर आधुनिक साहित्य ऐसी अतहायता प्रकट करता है| इसका
कारण यह हे कि पूँ जीवादी समाज-व्यवस्था की परिधि में प्रगति की ग॒ुजा-
इश अर नहीं रही, श्रोर मध्य-वर्ग के कल्लाकार के लिए परियों की कहानियों
के अ्रतिरिक्त इस परिध्थिति से बचकर निकलने का कोई मार्ग नहीं रहा ।
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व्यक्तिवाद पूँ जीवादी समाज-व्यवस्था का जीवन-दर्शन है । व्यक्तिवाद
सभी कला-रूपों के विनाश श्रौर श्रोर स्वेच्छाचार में झत्म होता है। प्राचीन-
तेम परम्परा इन नाशवादी प्रयोगों से कला को नहीं बचा सकती |
कवि अपने ही आनन्द और रस के लिए लिखता है| उसकी ग्रासा की
स्वृतस्त्र गति में कोई बाधा न पढ़नी चाहिए | यदि उसकी रचना दुर्बोध है
तो उसके पास कोई चारा नहीं | उसके पाठक अरद्धशिक्षित और अ-संस्कृत
हैं । उसकी आत्मा की गति स्वतन्त्र है; वायु के समान स्वेच्छा से वह विच-
र्ती है | यदि उसके श्रम का फल बिरूप अथवा विचित्र है, तो इससे कोई
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