आधुनिक हिंदी साहित्य : एक दृष्टि | Aadhunik Hindi Sahitya Ek Drshti

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Aadhunik Hindi Sahitya Ek Drshti by प्रकाशचन्द्र गुप्त - Prakashchandra Gupt

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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कला और समाज ६ गतिमूलक समाज की ही सजीव उपज है | ग्रस्त, जेग् जोत श्रथवा दी एस० इलियट-की रचनाओं मे एक फीक्रापन ই, নন লগা यीता वैमव ह | यह झवसाद सभी आधुनिक वूजु आ कला का गुण है । इस कला के हास- गुण पर जॉन स्ट्रेची लिखते हैं:--.. “ इन लेखकों को हातोन्मुख कहने से हमारा तात्पर्य यह है कि ऐसी रचनाएँ, चाहे मले या बुरे के लिए, किसी संस्कृति के अ्रन्तिम छ्षणों में ही हो सकती हैं | इस प्रकार की रचना सदैव ही किसी युग के श्राख्तिरिी चरण में होती है | 'वइजेन्टियन! शब्द, जो इसके लिए गढ़ा गया है, यही व्यक्त करता है । 'हातोन्मुखः विशेषण से हमारा यही तालये है |” उनकी रचनाओं से स्वास्थ्य और जीवन का कोई ग्रुण अवश्य ही निकल चुका है । उनकी कला की रंगीनी क्षय-पीड़ित मुख के आलोक की तरद है | इन रचनाओं में एक ऐसा नेराश्य और पराजय का भाव है, जिंतकी पुराने लेखकों की दुःखान्त शालीनता से कोई समता, नहीं । अधिकतर आधुनिक साहित्य ऐसी अतहायता प्रकट करता है| इसका कारण यह हे कि पूँ जीवादी समाज-व्यवस्था की परिधि में प्रगति की ग॒ुजा- इश अर नहीं रही, श्रोर मध्य-वर्ग के कल्लाकार के लिए परियों की कहानियों के अ्रतिरिक्त इस परिध्थिति से बचकर निकलने का कोई मार्ग नहीं रहा । 2 ४ व्यक्तिवाद पूँ जीवादी समाज-व्यवस्था का जीवन-दर्शन है । व्यक्तिवाद सभी कला-रूपों के विनाश श्रौर श्रोर स्वेच्छाचार में झत्म होता है। प्राचीन- तेम परम्परा इन नाशवादी प्रयोगों से कला को नहीं बचा सकती | कवि अपने ही आनन्द और रस के लिए लिखता है| उसकी ग्रासा की स्वृतस्त्र गति में कोई बाधा न पढ़नी चाहिए | यदि उसकी रचना दुर्बोध है तो उसके पास कोई चारा नहीं | उसके पाठक अरद्धशिक्षित और अ-संस्कृत हैं । उसकी आत्मा की गति स्वतन्त्र है; वायु के समान स्वेच्छा से वह विच- र्ती है | यदि उसके श्रम का फल बिरूप अथवा विचित्र है, तो इससे कोई




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