तपते हुए दिनों के बीच | Tapte Hue Dino Ke Beech
श्रेणी : काव्य / Poetry
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
770 KB
कुल पष्ठ :
98
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)यात्रा-पंखुरी से नदी तक
मैंने म्जलि में जल भर कर
दिया जब तुम्हें अरध्यं
तब तुम सुरजमुखी की तरह
पंखुरी-पंखुरी खिल उठीं
फिर देखा कि सहसा
उन्हीं पंखुरियों के बीच से
एक नदी उग्र आई है/दो होठों वाली गोरी नदी
और उस दी होठों वाली गोरी नदी की लहरियां
मुझ में परत-दर-परत यभ
मचलने को |
बेचेन हो रही हैं
क्यों अंजलि में उगती है दो होठों वाली गोरी नदी ?
श्रौर क्यों उसकी लहरियां
मुक मे परत-दर-परत)।मचलने को
बचेन हो उठती है
झौर फिर क्यों लगती है गोरी नदी के जल में आग ?
इतना श्रथाह जल
क्यों किनारे में समा जाता है ?
क्यों उमड़ते हैं इतने वादल ?
दो होठों वाली गोरी नदी के जल में क्यों लगती है ग्राग ?
क्यों उगती है तुम्हारी खूशबूदार आंखें
मेरे आस-पास
और क्यों मेरी अ्रांखों में
प्यास की एक श्रवुभः पहचान जगा कर
छोड़ देती है देहराग !
तपते हुए दिनों के बीच / ए
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